झींगे की खेती उजाड़ रही है भीतरकनिका का मेंग्रोव
पंकज चतुर्वेदी
उड़ीसा के केंद्रपाडा जिले में भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यह “रामसर स्थल” के रूप में संरक्षित है। इसका क्षेत्रफल सन 2002 में 65 हज़ार हेक्टेयर हुआ करता था जो पन्द्रह फ़ीसदी सिमट गया है . भीतरकनिका , ओडिया के दो शब्दों से मिल कर बना है - 'भीतर' अर्थात आंतरिक और 'कनिका' का अर्थ है जो असाधारण रूप से सुंदर है। अभयारण्य में 55 विभिन्न प्रकार के मैंग्रोव हैं जहाँ मध्य एशिया और यूरोप से आने वाले प्रवासी पक्षी भी इस समय अपना डेरा जमाते है।
यह ओडिशा के बेहतरीन जैव विविधता वाला दुर्लभ स्थान है. समुद्र से सटे इसके तट पर अजूबे कहे जाने वाले ओलिव रिडले कछुए अंडे देते हैं तो विलक्षण खारे पानी वाले मगरमच्छों को देखा जा सकता है। यहाँ मिले 23 फूट लम्बे मगरमच्छ का नाम गिनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है . ऐसा कहा जाता है कि देश के खारे पानी के मगरमच्छों की सत्तर फीसदी आबादी यहीं रहती है, जिनका संरक्षण 1975 में शुरू किया गया था। यूनेस्को द्वारा संरक्षित इस मैंग्रोव को बढ़ते औद्योगीकरण और खनन से पहले से ही खतरा रहा है और अब झींगे की खेती ने इसके सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है .
यह विडम्बना है कि उड़ीसा हाई कोर्ट ने 27 जुलाई 2021 को राज्य सरकार को आदेश दे चुकी है कि भीतरकनिका राष्ट्रिय उद्यान और उसके आसपास से झींगे की खेती के सभी घेरों को तत्काल समाप्त किया जाये. अदालत का आदेश था कि ड्रोन या सेटेलाइट से इसका सर्वेक्षण कर तत्काल “घेरों” को हटाया जाए . लेकिन राज्य सरकार एक तरफ तो इन्हें हटाने के आदेश देती है दूसरी तरफ इस क्षेत्र में झींगा खेती को बढ़ावा दे रही है . विदित हो तीन अप्रैल, 2017 को, सर्वोच्च न्यायालय ने 15 राज्यों में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि वे महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि के संरक्षण के मुद्दे को गंभीरता से लें . देश में ऐसी लगभग 26 जल संरचनाएं हैं जहां अवैध झींगा 'घेरी' हैं और इससे आर्द्रभूमि को गंभीर नुकसान हो रहा है .
तदनुसार, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने दो आर्द्रभूमि - पुरी, खुर्दा , गंजाम जिलों की चिल्का और केंद्रपाड़ा जिले के भितरकनिका संरक्षण हेतु खुद ही पहल की थी .वकील मोहित अग्रवाल को इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था.
झींगा पालन ओडिशा में खनन के बाद सबसे बड़ी विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली गतिविधियों में से एक है। कहा जाता है कि शक्तिशाली राजनेता, नौकरशाह और व्यवसायी द्वारा पर्दे के पीछे से गतिविधियों को संचालित करते हैं. एक तो इस काम में बहुत अधिक मुनाफ़ा है, दूसरा समुद्र तट होने के कारण खारा पानी कि उपलब्धता के कारण झींगे का उत्पादन सरल होता है , तीसरा कोई दस हज़ार लोग इस कार्य से अपना जीवकोपार्जन चला रहे है – तभी सरकार इस पर कोई कड़ी कार्यवाही करने को राजी नहीं हैं . अनुमान है कि भितरकनिका मेंग्रो के आसपास कोई 17 हज़ार 780 हेक्टेयर में झींगे के घेरे बने हुए हैं .
उड़ीसा जो कि पहले भी एक बड़ा चक्रवात झेल चुका है और जलवायु परिवर्तन के चलते साल दर साल बढ़ रहे चक्रवाती खतरे के कारण यहाँ मेंग्रोव् या वर्षा वन का बेहद महत्व है . मैंग्रोव वन धरती तथा समुद्र के बीच एक उभय प्रतिरोधी (बफर) की तरह कार्य करते हैं तथा समुद्री प्राकृतिक आपदाओं से तटों की रक्षा करते हैं. ये तटीय क्षेत्रों में तलछट के कारण होने वाले जान-मान के नुकसान को रोकते हैं. यही नहीं स्थानीय निवासियों द्वारा पारम्परिक रूप इनका प्रयोग भोजन, औषधि, टेनिन, ईंधन तथा इमारती लकड़ी के लिये किया जाता रहा है। तटीक इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिये जीवनयापन का साधन इन वनों से प्राप्त होता है तथा ये उनकी पारम्परिक संस्कृति को जीवित रखते हैं। ऐसे में महज कुछ धन के लिए झींगा उत्पादन कर मेंग्र्वो को नुकसान पहुँचाने का अर्थ है खुद ब खुद आपदा को आमंत्रण देना .
जानना जरुरी है कि दुनिया में जहां भी वर्षा वनों में झींगे के खेत लगाए , वहां जल निधियां उजाड़ गईं, इंडोनेशिया में तो कई जगह भारी पर्यावर्णीय संकट का सामना करना पड़ा , यु एन की एक रिपोर्ट के अनुसार 1980 के बाद से दुनिया भर में मैंग्रोव का लगभग पांचवां नष्ट हो गया है और यह हुआ झींगा की खेती के लिए स्थान देने के कारण . जहाँ झींगे लगाए गए, ढेर सारी कीटनाशक. एंटीबायोटिक्स और कचरों के ढेर ने वर्षा वनों को लीलना शुरू कर दिया . जबकि धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में इन वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है. यह ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड को अन्य पेड़ों की तुलना में चार गुना अधिक अवशोषित करते हैं, और इसे अपनी जड़ों में जमा करते हैं. इससे समुद्र तट का स्टार उंचा होता है और यह चक्रवात की स्थिति में एक दीवार बन जाते हैं .
भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में इस समय आ रहे प्रवासी पक्षियों के लिए भी झींगा खेती खतरा है, विदित हो यदि ये पंछी तट पर लापरवाही से पड़े सादे –गले झींगे को हका लें तो इन्हें एविएशन फ्लू की संभावना होती है और यह बीमारी यदि एक चिडया में लग जाए तो हज़ारों मारे जाते हैं,इन दिनों ओलिव रिडले कछुए के बच्चे समुद्र मार्ग से दूर देश लौट रहे हैं और मेंग्रो में लगे झींगे के अवैध जाल और घेरे उनका मार्ग रोकते हैं .
इतने गंभीर पर्यावरणीय संकट और भीतरकनिका के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे झींगा उत्पादन पर जिला प्रशासन ने ढेर सारे स्वयं सहायता समूह, सहकारी समितियां बना दी हैं और उन्हें विभिन्न योजनाओं के तहत प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है . जिला प्रशासन का दावा है कि कोर्ट ने तो गैरकानूनी घेरों को हटाने के लिए खान है जिन्हें हटा दिया गया है . उधर हाई कोर्ट के एमिकस क्युरी श्री अग्रवाल ने अदालत को बताया है कि जिला प्रशासन ने ईमानदारी से हवाई सर्वे किया नहीं जा रहा है । वैसे प्रशासन हजारों लोगों के रोजगार की आड़ में घेरों को हटाने से बच रहा है, जबकि सितम्बर 21 में जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय की एजेंसी इंटरनेशनल क्लाइमेट इनिशिएटिव के राजदूत स्वयं भीतरकनिका आये थे और उन्होंने वैकल्पिक रोजगार के लिए एक बड़ी योजना की घोषणा की थी . चूँकि अधिकांश स्थानीय लोग महज मजदूर हैं और इसमें लगा धन रसूखदार लोगों का है ,सो वह योजना जमीन पर नहीं दिखी .
दिसम्बर 2020 में ‘इंटिग्रेटेड मेनेजमेंट ऑफ़ वाटर एंड एनवायरनमेंट “ पर एक कार्यशाला का आयोजन भीतरकनिका में किया गया था | इसका आयोजन राजनगर वन संभाग, चिल्का विकास प्राधिकरण और जीआइझेड इंडिया ने किया था | इस कार्यशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बताया था कि भीतरकनिका मैंग्रोव में मीठे पानी का प्रवाह सन 2001 में जहां 74.64 प्रतिशत था , आज यह घट कर 46 फीसदी रह गया है | जाहिर है कि मीठे पानी के प्रवाह में कमी का मूल कारण खारास्रोता नदी में साफ़ पानी के आगम या क्षमता में गिरावट है | यदि इसके पानी को अभी कहीं भी अविरल बहने से रोका-टोका गया तो भीतरकनिका मैंग्रोव में खारा पानी बढेगा और यही इसके पूरे तंत्र के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा .
मैंग्रोव
में खारा पानी बढ़ने से मगरमच्छों के नदी की तरफ रुख करने से इंसान से उनका टकराव बढ़ सकता है . इस इलाके में हज़ारों
लोग मछलीपालन से आजीविका चलाते हैं. नदी
में यदि मीठा जल घटा तो मछली भी कम होगी , जाहिर है उनकी रोजी रोटी पर भी संकट .
ऐसे में यहाँ के नैसर्गिक तन्त्र से छोटी सी छेड़छाड़ प्रकृति को बड़ा स्थायी नुक्सान
पहुंचा सकती है .
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