लम्पीग्रस्त मवेशी खतरा हैं
प्रवासी पंछियों के लिए
पंकज चतुर्वेदी
सन 2019 में
राजस्थान की साम्भर झील में फैली एवियन बॉटुलिज़्म संक्रमण के कारण मारे गए
हज़ारों प्रवासी पंक्षियों की त्रासदी के सदमे से शायद पक्षी खुद उबार नहीं पाए हैं
और इस बार भारत में विदेशी पक्षियों के सबसे बड़े ठीकाने में से एक साभर ता आने
वाले मेहमान आधे रह गए हैं , वैसे यहाँ
कोई धी सौ प्रजाति के पक्षी आते रहे है लेकिन इस बार यह संख्या 110 ही रही है . शायद कुदरत ने इन बेजुबान जानवरों को संभावित खतरे
को भांपने की क्षमता भी दी है तभी वे मवेशियों
में लम्पी रोग उससे संभावित खतरे के डर भी से इस तरफ नहीं आये . वैसे भी इस झील के
नैसर्गिक स्वरुप में छेडछाड़ ने भी न केवल पक्षियों की संख्या घटाई है, बल्कि उन पर
खतरे की बादलों को भी गहरा किया है .
यह सभी जानते हैं कि आर्कटिक
क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान षून्य से चालीस डिगरी तक नीचे जाने लगता है
तो वहां के पक्षी भारत की ओर आ जाते हैं ऐसा हजारों साल से हो रहा है, ये पक्षी किस तरह रास्ता
पहचानते हैं, किस तरह हजारों किलोमीटर उड़ कर आते हैं,
किस तरह ठीक उसी जगह आते हैं, जहां उनके
दादा-परदादा आते थे, विज्ञान के लिए भी अनसुलझी पहेली की तरह
है।
भारत की सबसे विशाल खारे पानी
की झील ‘सांभर’ का
विस्तार 190 किलोमीटर,लंबाई 22.5 किलोमीटर है। इसकी अधिकतम गहराई
तीन मीटर तक है। अरावली पर्वतमाला की आड़
में स्थित यह झील राजस्थान के तीन जिलांे- जयपुर,अजमेर और
नागौर तक विस्तारित है। सन 1996 में 5,707.62 वर्ग किलामीटर जल ग्रहण क्षेत्र वाली
यह झील सन 2014 में 4700 वर्गकिमी में
सिमट गई। चूंकि भारत में नमक के कुल उत्पादन का लगभग नौ फीसदी- 196000 टन नमक यहां से निकाला जाता है अतः नमक-माफिया भी यहां की जमीन पर कब्जा
करता रहता है। इस विशाल झील के पपानी में खारेपन का संतुलन बना रहे, इसके लिए इसमें मैया, रूपनगढ़, खारी,
खंडेला जैसी छोटी नदियों से मीठा पानी लगातार मिलता रहता है तो
उत्तर में कांतली, पूर्व में बांदी, दक्षिण
में मासी और पश्चिम में नूणी नदी में इससे बाहर निकला पानी जाता रहा है। दीपावली बीतते
ही यहाँ विदेशी मेहमानों के झुंड आने शुरू हो जाते हैं.
इस बार राजस्थान में पालतू
गायों में लम्पी रोग की तगड़ी मार है. अनुमान है कि अभी तक राज्य में इस बीमारी से कोई 72 हज़ार मवेशी
मारे गए हैं . एक तो एस रोग को ले कर भ्रांतियां हैं , दूसरा यह संक्रामक रोग है,
इसके चलते लम्पी से मरे मवेशियों को लोग
लावारिस वीराने में छोड़ देते हैं. ऐसी लाशें विदेशी पक्षियों के लिए जानलेवा हैं,
विदित हो इससे पहले जब भी साम्भर झील में
पक्षियों की सामूहिक मौत हुई है,
उसका बड़ा कारण एवियन बॉटुलिज़्म नामक रोग रहा है और यह रोग मूल रूप से मांसाहारी
जानवरों में होता है . यह बीमारी क्लोस्ट्रिडियम
बॉट्यूलिज्म नाम के बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। यह बीमारी आमतौर पर मांसाहारी
पक्षियों को ही होती है। चूँकि साम्भर झील के आसपास बड़ी संख्य में लम्पी की चपेट
में आ कर मवेशी मरे हैं और उनके शव लावारिस हैं, निश्चित ही भोजन के लिए ये पक्षी संक्रमित शवों पर भी बैठ रहे हैं . उधर न तो
पशु चिकित्सा विभाग ने इसकी कोई तैयारी की
है और न ही वन विभाग ने इन प्रवासियों के संरक्षण हेतु किसी तरह की मोनिटरिंग या
सवाच्छ्ता के ख़ास इंतजाम .
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि साम्भर झील के जल में लगातार
प्रदूषण की मात्र बढ़ने से भी यह स्थान पक्षियों के लिए सुरक्षित नहीं रहा है .पुराने अनुभव बताते हैं कि यहाँ पर पक्षियों की मौत का एक कारण ‘हाईपर न्यूट्रिनिया’ भी रहा है . नमकीन जल में सोडियम की मात्रा ज्यादा होने पर, पक्षियों के तंत्रिका तंत्र इसका
पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे खानापीना छोड़ देतें हैं व उनके पंख और पैर में लकवा
हो जाता है। कमजोरी के चलते उनके प्राण निकल जाते हैं। अभी तक तो यही हुआ है कि पक्षियों
की प्रारंभिक मौत हाइपर न्यूट्रिनिया से
ही हुई। बाद में उनमें एवियन बॉटुलिज़्म के जीवाणु विकसित हुए और ऐसे मरे पक्षियों
को जब अन्य पंछियो ने भक्षण किया तो बड़ी संख्या मंे उनकी मौत हुई. लेकिन इस बार का
खतरा तो कई गुना भयानक है – क्योंकि लम्पी ग्रस्त मवेशी के आहार का रास्ता खुला
अहा है
याद करें सन 2010 में भी लगभग इसी तरह हुई पक्षियों की मौत के बाद गठित
कपूर समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल हुआ नहीं , दो साल पहले भी हाई कोर्ट
ने सांभर झील को रामसर साईट घोषित किए जाने के बाद अर्थात 24
मार्च 1990 के बाद इस झील पर दी गई लीज, निर्माण, अवैध कब्जों की जानकारी और झील को अतिक्रमण
से बचाने के उपायों की भी जानकारी मांगी है. सरकार ने आधी अधूरी जानकारी दी और झील
का पानी और खराब होता गया . सांभर झील के पर्यावरण के साथ लंबे समय से की जा रही
छेड़छाड़ भी पक्षियों के यहाँ से मुंह मोड़ने का बड़ा कारण है। एक तो सांभर साल्ट
लिमिटेड ने नमक निकालने के ठेके कई कंपनियों को दे दिए जो मानकों की परवाह किए बगैर गहरे कुंए और झील के
किनारे दूर तक नमकीन पानी एकत्र करने की खाई बना रहे हैं। फिर परिशोधन के बाद
गंदगी को इसी में डाल दिया जाता है। विशाल झील को छूने वाले किसी भी नगर कस्बे में
घरों से निकलने वाले गंदे पानी को परिशेाधित करने की व्यवस्था नहीं है और हजारों
लीटर गंदा-रासायनिक पानी हर दिन इस झील में मिल रहा है।
यह जलवायू परिवर्तन की त्रासदी
है कि इस साल औसत से कोई 46 फीसदी ज्यादा
पानी बरसा। इससे झील के जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार हो गया। चूंंिक इस झील में नदियों से मीठा पानी की आवक और अतिरिक्त खारे पानी को नदियों में
मिलने वाले मार्गों पर भयंकर अतिक्रमण हो गए हैं, सो पानी
में क्षारीयता का स्तर नैसर्गिक नहीं रह पाया। भारी बरसात के बाद यहां तापमान फिर
से 27 डिगरी के पार चला गया। इससे पानी को क्षेत्र सिंकुड़ा व
उसमें नमक की मात्रा बढ़ गई इसका असर झील के जलचरों पर भी पड़ा।
यह भी जानना जरूरी है कि सांभर
साल्ट लिमिटेड ने इस झील के एक हिस्से को एक रिसार्ट को दे दिया है। यहां का सारा
गंदा पानी इसी झील में मिलाया जाता है। इसके अलावा कुछ सौर उर्जा परियेाजनाएं भी
हैं। फिर तालाब की मछली का ठेका दिया हुआ है। ये विदेशी पक्षी मछली ना खा लें, इसके लिए चौकीदार लगाए गए हैं। जब पंक्षी को ताजा मछली
नहीं मिलती तो वह झील में तैर रही गंदगी, लम्पी से मरे मवेशी
का मांस ,भेाजन के अपशिष्ठ या कूड़ा खाने लगता है. यह बातें भी पक्षियों के इम्यून सिस्टम के कमजोर होने वा
उनके सहजता से विषाणु के शिकार हो जाने का कारक हैं।
पर्यावरण के प्रति बेहद
संवेदनशील पक्षी उनके प्राकृतिक पर्यावास में अत्यधिक मानव दखल, प्रदूषण, भोजन के अभाव से भी परेशान
है। सनद रहे हमारे यहां साल-दर-साल प्रवासी पक्षियों की संख्या घटती जा रही है। प्रकृति संतुलन और
जीवन-चक्र में प्रवासी पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनका इस तरह से
मारा जाना असल में अनिष्टकारी है।
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