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मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

Why Teesta water distribution scheme is not being realized

 आखिर क्यों नहीं साकार हो रही  है तीस्ता जल वितरण योजना

पंकज चतुर्वेदी



वैसे तो भारत और बांग्लादेश  की सीमायें  कोई 54 नदियों का जल साझा करती हैं और  इसी साल अक्तूबर में बांग्लादेश की प्रधान मंत्री के भारत आगमन पर कुशियारा नदी से पानी की निकासी पर भारत सरकार और बांग्ला देश के बीच समझोता  भी हुआ है, जिसका लाभ दक्षिणी असम  और बांग्लादेश के सिलहट के किसानो को मिलना है , लेकिन तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे  का मसला हर बार  विमर्श में तो आता है लेकिन उस पर सहमती नहीं बन पाती,  तीस्ता नदी  हमारे लिए केवल जलापूर्ति के लिए ही नहीं ,बल्कि बाढ़ प्रबंधन के लिए भी   महत्वपूर्ण है.  

तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के हिमालयी क्षेत्र के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है। फिर पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और बाद में बांग्लादेश में रंगपुर से बहती हुई फुलचोरी  में ब्रह्मपुत्र नदी में समाहित हो जाती है। तीस्ता नदी की लम्बाई 413 किलोमीटर है। यह नदी सिक्किम में 150 किलोमीटर , पश्चिम बंगाल के 142 किलोमीटर और फिर बांग्लादेश में 120 किलोमीटर बहती है। तिस्ता नदी का 83 फीसदी हिस्सा भारत में और 17 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश में है। सिक्किम और  उत्तरी बंगाल के छः  जिलों के कोई करीब एक करोङ बाशिंदे खेती, सिंचाई और पेय जल के लिए इस पर निर्भर हैं . ठीक यही हाल बांग्लादेश का भी है  चूँकि  1947 बंटवारे के समय नदी का जलग्रहण क्षेत्र भारत के हिस्से में आया था , सो इसके पानी  का वितरण  ब्बीते 75 साल से अनसुलझा है. सन 1972 में पाकिस्तान से अलग हो कर बांग्लादेश के बना और उसी साल दोनों देशों ने साझा नदियों के जल वितरण पर सहमती के लिए संयुक्त जल आयोग का गठन किया . आयोग की पहली रिपोर्ट 1983 में आई , जिसके मुताबिक सन 1983 में भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी को लेकर एक समझौता हुआ. इसके तहत 39 प्रतिशत जल भारत को और  बांग्लादेश को 36 प्रतिशत जल मिलना तय हुआ .  25 प्रतिशत जल को यूँ ही रहने दिया और बाद में भारत इसका इस्तेमाल करने लगा. इस पर बांग्लादेश को आपत्ति रही लेकिन उसने भी  सन 1998 अपने यहाँ तीस्ता नदी पर एक बांध बना लिया  और भारत से अधिक पानी की मांग करने लगा . ठीक उसी समय भारत ने जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार उपखंड में नीलफामारी में तीस्ता नदी ग़ज़लडोबा बांध बना लिया . इससे तीस्ता नदी का नियंत्रण भारत के हाथ में चला गया। बांध में 54 गेट हैं जो तीस्ता की मुख्य धारा से पानी को विभिन्न क्षेत्रों में मोड़ने के लिए हैं। बांध मुख्य रूप से तीस्ता के पानी को तीस्ता-महानंदा नहर में मोड़ने के लिए बनाया गया था।

 

 

 विदित हो 5 जनवरी, 2021 को भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग की तकनीकी समिति की संपन्न बैठक में बहुत सी नदियों के जल वितरण के समझोते के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया . त्रिपुरा के सबरूम शहर में पानी के संकट को दूर करने के लिए फेनी नदी से 1.82 क्यूसेक पानी निकालने पर बांग्लादेश ने मानवीय आधार प् सहमती भी दी लेकिन तीस्ता जल के वितरण का मुद्दा अनसुलझा ही रहा .

यह तय है कि तीस्ता भी जलवायु परिवर्तन और ढेर सारे बांधों के कारण संकट में है .ग़ज़लडोबा बांध से पहले जहां तीस्ता बेसिन में 2500 क्यूसेक पानी उपलब्ध था, आज यह बहाव 400 क्यूसेक से भी कम है. 1997 में बांग्लादेश में शुष्क मौसम के दौरान, तीस्ता में पानी का प्रवाह लगभग 6,500 क्यूसेक था, जो 2006 में घटकर 1,348 क्यूसेक हो गया और 2014 में यह केवल 800 क्यूसेक रह गया. नदी में जल कम होने का खामियाजा  डॉन तरफ के किसानों को उठाना पद रहा है . दुर्भाग्य है की यह सदानीरा नदी गर्मी में बिलकुल सूख जाती है और लोग पैदल ही नदी पार करते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि सलीके से वितरण, बाढ़ प्रबंधन  और बेसिन क्षेत्र में कम बरसात के चलते तीस्ता एक मृत नदी में बदल गई है.  अगर ऐसा ही चलता रहा तो न सिर्फ जनजीवन बल्कि जैव विविधता को भी खतरा होगा। तीस्ता जल बंटवारा समझौता अब समय की मांग है। लेकिन तीस्ता जल-साझाकरण समझौते पर भारत की शिथिलता स्थानीय राजनीती के जंजाल में फंसी हुई है .

दोनों पडोसी देशों के बीच समझोता न हो पाने का लाभ चीन उठा रहा है.  पेइचिंग ने बांग्ला देश को 937. 8 मिलियन डॉलर की मदद दे कर तीस्ता मेगा परियोजना शुरू करवा दी है . इसके तहत  एक बड़े जलाशय का निर्माण ,  नदी के गहरीकरण के लिए खुदाई , लभग 173 किलोमीटर पर नदी तटबंध निर्माण की योजना है . इसके पूर्ण होने से  बाढ़ के समय  तीस्ता का जल  तेज प्रवाह से बांग्लादेश की तरफ जाएगा और भंडारण भी होगा, इसका सीधा असर भारत पर पडेगा

तीस्ता नदी में अपार संभावनाएं हैं। यदि तीस्ता जल-साझाकरण समझौते या तीस्ता परियोजना का उचित कार्यान्वयन संभव हो जाता है तो न केवल तीस्ता तट या उत्तर बंगाल के लोग बल्कि पूरे बांग्लादेश को इसका लाभ मिलेगा। उत्तर बंगाल की जनता के सार्वजनिक जीवन में बदलाव आएगा। पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ नियंत्रण होने से अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी. 

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