दीपोत्सव की रात बेबस सुप्रीम कोर्ट हांफता रहा
पंकज चतुर्वेदी
अमावस की गहरी अंधियारी रात में इंसान को बेहतर आवोहवा देने की सुप्रीम कोर्ट की उम्मीदों का दीप खुद ही इंसान ने बुझा दिया. रात आठ बजे बाद जैसे-जैसे रात गहरी हो रही थी, केंद्र सरकार द्वारा संचालित सिस्टम- एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च अर्थात सफर के एप पर दिल्ली एनसीआर के का एआईक्यू अर्थात एयर क्वालिटि इंडेक्स खराब से सबसे खराब के हालात में आ रहा था। गाजियाबाद में तो हालात गैस चैंबर के थे. यहाँ संजय नगर इलाके में शाम सात बजे एक्युआइ 68 था, फिर 10 बजे 160 यानी स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक हो गया .रात 11. 40 बजे यह 669 था . यहां कई पीएम 2.5 और 10 का स्तर 700 के पार था। नोयडा और गुरुग्रं की हालत भी लगभग इतने ही खराब थे . आधी रात तक पूरी तरह पाबंद पटाखे, जैसे लड़ी वाले, आकाश में जा कर धमाके से फटने वाले बेरियम के कारण बहुरंगी सभी धड़ल्ल्े से चलते रहे। फिर स्मोग का घना अँधेरा छा गया . दुर्भाग्य यह है कि शिक्षित और धनवान लोगों के इलाकों में धमाके सर्वाधिक रहे . भले ही इस बार आतिशबाजी चला कर सुप्रीम केर्ट को नीचा दिखाने वालों की संख्या पहले से बहुत कम रही, लेकिन उनके पाप आवोहवा के जहरीला बनाने के लिए पर्याप्त था और उनकी इस हरकत से लाखो वे लोग भी घुटते रहे जो आतिशबाजी से तौबा कर चुके है। सोमवार सुबह मुहल्लों की सड़के-गलियां आतिशबाजी से बचे कचरे से पटी हुई थीं और यह बानगी था कि स्वच्छता अभियान में हमारी कितनी आस्था है ?
साफ हो गया कि बीते सालों की तुलना में इस बार दीपावली की रात का जहर कुछ कम नहीं हुआ, कानून के भय सामाजिक अपील सबकुछ पर सरकार ने खूब खर्चा किया लेकिन भारी-भरकम मेडिकल बिल देने को राजी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी समय, आवाज की कोई भी सीमा नहीं मानी । दुर्भाग्य यह है कि जब देश के प्रधानमंत्री शून्य कार्बन उत्सर्जन जैसा वादा दुनिया के सामने कर रहे है, तब एक कुरीति के चलते देश की राजधानी सहित समूचे देश में वह सबकुछ हुआ जिस पर पाबंदी है और उस पर रोक के लिए ना ही पुलिस और ना ही अन्य कोई निकाय मैदान में दिखा। यदि इतनी आतिशबाजी चली है तो जाहिर है कि यह बाज़ार में बिकी भी होगी . दिल्ली से सटे गाजियाबाद के स्थानीय निकाय का कहना है कि केवल एक रात में पटाखों के कारण दो सौ टन अतिरिक्त कचरा निकला। अगली सुबह लोग धड़ल्ले से कूड़ा जलाते दिखे । जाहिर है कि अभी सांसों के दमन का अंत नहीं हैं।
अकेले दिल्ली ही नहीं देश के बड़े हिस्से में जब रात ग्यारह बजे बाद हल्की ओस शुरू हुई तो स्मॉग ने दम घोंटना शुरू कर दिया। स्मॉग यानि फॉग यानि कोहरा और स्मोक यानि धुआं का मिश्रण। इसमें जहरीले कण शामिल होते हैं जो कि भारी होने के कारण उपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वाले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जब इंसान सांस लेता है तो ये फैंफड़े में पहुच जाते हैं। किस तरह दमे और सांस की बीमारी के मरीज बेहाल रहे, कई हजार लोग ब्लड प्रेशर व हार्ट अटैक की चपेट में आए- इसके किस्से हर कस्बे, शहर में हैं।
इस बार एनसीआर
में आतिशबाजी की दुकानों की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि ग्रेप पीरियेड होने के कारण ग्रीन आतिशबाजी की भी अनुमति नहीं थी, जहां थी वह भी केवल आठ बजे से दस
बजे तक। परंतु ना प्रशासन ने अपनी प्रशासनिक
जिम्मेदारी निभाई और ना ही पटाखेबाजों ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी। केवल एक रात
में पूरे देश में हवा इतनी जहर हो गई कि 68 करोड़ लेगों की जिंदगी तीन साल कम हो गई। हम सभिय्ह जान कर भी अनदेखा
अक्र्ते हैं कि पटाखें जलाने से निकले धुंए में सल्फर डाय आक्साईड, नाईट्रोजन डाय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड,
शीशा , आर्सेनिक, बेंजीन,
अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये शरीर में घुलते हैं। इनका
कुप्रभाव पशु – पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का
निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदुषण होता है। यदि
इसके कागज वाले हिस्से को रिसाईकल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति
में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके विशैले कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल व जमीन को स्थाई व
लाईलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं।
सवाल यह है कि
क्या सुप्रीम कोर्ट को इस तरह ख़ुदकुशी कर रहे समाज की सांसे बचाने के लिए अब कुछ
करना ही नहीं चाहिए ? क्या यह मसला केवल कानून या कड़ाई से ही सुलझेगा ? क्या समाज को जागरूक बनाने के प्रयास बेमानी
हैं हैं ? यह तय है कि आतिशाब्जी का उत्पादन, परिवहन, भण्डारण और विपणन पर जब तक कड़ाई से नियंत्रण
नहीं होगा, तब तक इस तरह लोग मरते रहेंगे और अदालतें चीखती रहेंगी . एक बात जान
लें लोकतंत्र का सबसे भरोसेमंद स्तंभ “न्याय पालिका “ को यदि पर्व के नाम पर इस
तरह बेबस किया गया तो इसका दुष्परिणाम जल्द ही समाज को ही भोगना होगा .
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