हम खुद अपनी साँसों से बेपरवाह हैं
पंकज चतुर्वेदी
दिल्ली के यूपी की सीमा से लगे आनंद विहार में वायु गुणवत्ता सूचकांक अर्थात एक्यूयाई 900 पार हो गया । नोयडा भी 700 पार है । यदि किसी संवेदनशील देश में यह हालात होते तो वहाँ तालाबन्दी जैसे हालात हो जाते । कहने को ग्रेप -4 लागू कर दिया है , लेकिन न सड़कों पर जाम का खात्मा है और न ही स्मोग की घनी चादर केएम होने का नाम ले रही है । इस साल भी आतिशबाज़ी पर कड़ाई से पाबंदी लगाते हुये सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दे दिया था कि दूसरों के जीवन की कीमत पर आतिशबाजी दागने की छूट नहीं दी जा सकती है। लेकिन अदालत तो निर्देश दे सकती है , हालात की गंभीरता को जब समाज ही और दुष्कर बना दे तो किसकी दुहाई दी जाये ? अभी करवा चौथ की रात जब चंद्रमा निकला तो जिस तरह से पटाखे आकाश में उछले जा रहे थे , वे पूरी तरह देश में ही पाबंद हैं । जाहिर है कि उसका सर होना ही था । जिस पति की लंबी आयु की कामना के साथ उपवास व उत्सव सम्पन्न हुआ , उसकी आयु इतने जहरीले धुएँ से ना जाने इतने साल कम हो गई । सबसे बड़ी बात चंद्रमा निकालने पर आतिशबाज़ी की न तुक थी न परंपरा । परिणाम सामने है दिल्ली ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश और समूचे हरियाणा के अस्पताल सांस- अस्थमा के साथ –साथ दिल के रोगियों की अप्रत्याशित संख्या से बेहाल हैं ।
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद मनोज तिवारी की अर्जी ठुकराते हुए कहा कि जश्न मनाने के दूसरे तरीके ढूंढ सकते हैं. जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने तिवारी से कहा कि उन्हें अपने समर्थकों से भी कहना चाहिए कि रोशनी और आनंद के पर्व पर पटाखे न चलाएं. अदालत ने साफ कर दिया कि अकेले दीवाली ही नहीं, छट, गुरूपर्व और नये साल पर भी आतिशबाजी पर पूरी पाबंदी रहेगी, यहां तक कि ग्रीन आतिशबाज़ी भी नहीं। असल में कानून और अदालत के जरिये आतिशबाजी पर रोक की कोशिशें कई साल से चल रही हैं। अदालतें कड़े आदेश भी देती हैं, सरकारें इश्तेहार निकालती हैं। स्कूली बच्चे पोस्टर-रैली भी आकर देते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो कुतर्क और अवैज्ञानिक तरीके से अदालत की अवहेलना करते हैं। यह कड़वा सच है कि पुलिस या प्रशासन के पास न तो इतनी मशीनरी है , और न ही इच्छाशक्ति कि हर जगह निगाह रख सके। लेकिन समाज को तो अपने और अपने परिवार की सानशों की परवाह होनी चाहिए !
सनातन धर्म के विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बारूद के पटाखे चलाना कभी भी इस धर्म या आस्था की परंपरा का हिस्सा रहा नहीं है। रमजान में इफ्तार की सूचना या ईद एके चाँद निकलने पर आम लोगों तक खबर पहुंचाने के लिए बारूद की तोप चलाने की रवायत तो रही है, लेकिन करवा चौथ पर इसको अपनाना महज एक कुरीति और स्वास्थ्य-द्रोही ही है । इस साल दीवाली से पहले ही दिल्ली ही नहीं देश के बड़े हिस्से में ‘स्मॉग’ छा गया है । स्मॉग यानि फॉग यानि कोहरा और स्मोक यानि धुआं का मिश्रण। इसमें जहरीले कण शामिल होते हैं जो कि भारी होने के कारण उपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वाले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जब इंसान सांस लेता है तो ये फैंफड़े में प्रवेश कर जाते हैं। इससे दमा और सांस ब्लड प्रेशर व हार्ट अटैक का खतरा मंडराने लगता है ।
सन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर की हवा में जहर के हालात देखते हुए इलाके में आतिशबाजी की बिक्री पर रोक लगाई थी। उसके बाद हर साल दीवाली से पहले कभी रोजगार तो कभी परंपरा के नाम पर इस पाबंदी को हटाने की मांग होती है और हर बार कोर्ट का रूख कड़ा होता है।
यह किसी से छुपा नहीं है कि दीपावली की आतिशबाज़ी राजधानी दिल्ली सहित देश के 200 से अधिक महानगरों व शहरों की आवोहवा को जहरीला कर देती है । राजधानी दिल्ली में तो कई सालों से बाकायदा एक सरकारी सलाह जारी की जाती है - यदि जरूरी ना हो तो घर से ना निकलें। फैंफडों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम यानि पार्टिक्यूलर मैटर अर्थात हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माईक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली से पहले ही यह सीमा 900 के पार तक हो गई है। ठीक यही हाल ना केवल देश के अन्य महानगरों के बल्कि प्रदेशों की राजधानी व मंझोले शहरों के भी हैं । चूंकि हरियाणा-पंजाब में खेत के अवशेष यानि पराली जल ही रही है, साथ ही हर जगह विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण जाम, धूल के कारण हवा को दूषित कर रहे हैं, तिस पर मौसम का मिजाज। यदि ऐसे में आतिशबाज़ी चलती है तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। सनद रहे कि पटाखें जलाने से निकले धुंए में सल्फर डाय आक्साईड, नाईट्रोजन डाय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड, शीशा , आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये शरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव परिवेश में रहने वाले पशु -पक्षियों पर भी होता है। यदि उस समय बारिसग7 हो जाये तो तेजाब बरसेगा आसमान से।
यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदूषण होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाईकल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके रासायनिक विष- कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल व जमीन को स्थाई व लाईलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं। आतिशबाज़ी से उपजे शोर के घातक परिणाम तो हर साल बच्चे, बूढ़े व बीमार लोग भुगतते ही हैं।
दीपावली समृद्धि , स्वास्थ्य और शुभेच्छाओं का पर्व है । दीपावली के सात दिन, लोगों के आपस में मिलने से बढ्ने वाले सौहार्द , सुखद भविष्य की कामना और संपन्नता की आकांक्षा के दमकते दीप की ज्योति होते हैं । इसे जहरीले धुएँ से कलुषित कर हम अपना धन, स्वास्थ्य और संबंध तीनों को नुकसान ही पहुंचाते हैं ।
यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाईयों व डाक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। सबसे बड़ी बात यह दीपावली की मूल मंशा भी नहीं हैं। आतिशाब्जी की कुरीति समाज ने खुद ही आमंत्रित की है और अब समय आ गया है कि उससे खुद ही मुक्त हो । दीपावली खुशियां बांटने का पर्व है, मौत या दवाई नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें