My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

Solar energy can prevent food from becoming poisonous

 

खाने को जहरीला होने  से रोक सकती है  सौर ऊर्जा

पंकज चतुर्वेदी



मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में धान की पैदावार काफी अच्छी होती है। यहाँ का किसन धान मने लगने वाले कीड़ों से परेशान था। यदि कीटनाशक दलों तो खुद कि तबीयत खराब होती और उत्पाद की लागत बढ़ती सो अलग । जिले के ग्राम कटंगझरी के किसान वीरेन्द्र धान्द्रे एवं अन्य किसान किसानों ने कृषि विभाग से मिले सौर ऊर्जा आधारित सोलर लाइट ट्रैप को लगाया और अब बगैर  किसी रसायन के उनकी फसल निरापद है । घटती जोत और बढ़ती आबादी ने किसान पर दवाब बढ़ दिया ही कि अधिक फसल पैदा हो । किसी भी खेत में कीट -पतंगे एक नैसर्गिक उपस्थति होते हैं और इनमें से से कई एक खेती और धरती के लिए अनिवार्य भी है । फसल को हानिकारक कीत से बचाने के लिए छिड़की जा रही रासायनिक दवाएं न केवल फसल की पोशतिक्त की दुश्मन है, बल्कि प्रकृति-  मित्र  कीट – पतंगों को भी नष्ट कर देते हैं । अब खेतों में सूरज के चमक से चलने वाले प्रकाश-उत्पादक बल्ब  बगैर किसी नुकसान और मामूली व्यय में हानिकारक कीटों का नाश कर देते हैं ।

तेजी से हो रहे मौसम बदलाव और बढ़ते तापमान ने हर फसल चक्र के दौरान फसलों पर अलग–अलग कीटों के प्रकोप में भी बढ़ोतरी कर दी है ।  किसान के पास अभी तक एक ही उपाय रहा है, जितना कीट बढ़े, उतना कीटनाशक छिड़क दो । हर साल सैंकड़ों किसान इस  बेतहाशा  जहरीली दवाओं के इस्तेमाल के चलते  मौत या दमे-कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार होते हैं । हमारे देश में हर साल कोई दस हजार करोड़ रूपए के कृषि-उत्पाद खेत या भंडार-गृहों में कीट-कीड़ों के कारण नष्ट हो जाते हैं । इस बर्बादी से बचने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा हैं । जहां सन 1950 में इसकी खपत 2000 टन थी, आज कोई 90 हजार टन जहरीली दवाएं देश के पर्यावरण में घुल-मिल रही हैं । इसका कोई एक तिहाई हिस्सा विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अंतर्गन छिड़का जा रहा हैं ।  सन 1960-61 में केवल 6.4 लाख हेक्टर खेत में कीटनाशकों का छिड़काव होता था। 1988-89 में यह रकबा बढ़ कर 80 लाख हो गया और आज इसके कोई डेढ़ करोड़ हेक्टर होने की संभावना है। ये कीटनाशक जाने-अनजाने में पानी, मिट्टी, हवा, जन-स्वास्थ्य और जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। इपले अंधाधुंध इस्तेमाल से पारिस्थितक संतुलन बिगड़ रहा है, सो अनेक कीट व्याधियां फिर से सिर उठा रही हैं। कई कीटनाशियों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई है और वे दवाओं को हजम कर रहे हैं। इसका असर खाद्य श्रंखला पर पड़ रहा है और उनमें दवाओं व रसायनों की मात्रा खतरनाक स्तर पर आ गई है। एक बात और, इस्तेमाल की जा रही दवाईयों का महज 10 से 15 फीसदी ही असरकारक होता है, बकाया जहर मिट्टी, भूगर्भ जल, नदी-नालों का हिस्सा बन जाता है।

·         कीट नियंत्रण के लिए सोलर लाइट ट्रैप तकनीक का इस्तेमाल चमत्कारिक है, कम लागत का है और इसके कोई नुकसान भी नहीं हैं । यह बेहद साधारण सी तकनीक है।  सोलर लाइट ट्रैप खेत में एक स्थान पर रखा जाता है। सौर ऊर्जा संचालित कीट जाल पूरी तरह से स्वचालित, किफायती और पर्यावरण-अनुकूल उपकरण है। इस यंत्र में अल्ट्रावायलेट लाइट लगी है। दिन में सूर्य के प्रकाश में सोलर पैनल द्वारा ऊर्जा एकत्रित होती है और अंधेरा होने पर सेंसर के कारण यंत्र में लाइट चालू हो जाती है, जो कीटों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ट्रैप में कीटों के आने के बाद कीट नीचे लगी जाली में फँस जाते हैं। इस प्रकार खेत में किसानों को तना छेदक तितली और अन्य कीटों से फसलों को बचाने में मदद मिलती है। यह अत्याधुनिक उपकरण कीट और कीड़ों के पैटर्न की पहचान करता है और उसके अनुसार कीट प्रबंधन और नियंत्रण योजना विकसित करता है।इसकी पकड़ में सभी उड़ने वाले निम्फ और वयस्क कीड़ों जैसे पत्ती फ़ोल्डर, तना छेदक कीट, फल छेदक कीट, हॉपर, फल घुन और बीटल आदि अधिक आते हैं ।  पकड़ने में मदद करता है, जिससे खेतों में वयस्क आबादी और बाद की संतानों को कम किया जाता है।

इसकी  तकनीक बेहद सामान्य सी है जिसका कोई खास रखरखाव भी नहीं होता। इसमें स्वचालित सौर लाइट ट्रैप में 10 वाट की सोलर लाइट पैनल है जो उसके अंदर बैटरी को चार्ज करता है और रात के लिए बैकअप बनाता । इसकी खासियत है कि यह मशीन केवल शत्रु कीटों को निशाना बनाती है।ऐसे कीट शाम 6 बजे से रात 10 बजे के बीच अधिक सक्रिय होती हैं। सौर ऊर्जा स संचालित इसकी लाइट अंधेरा होते ही खुद ब खुद शुरू हो जाती है और सुबह उजेला हुआ कि बंद ।  एक बात और खेत में हर एक पौधे की लंबाई अलग-अलग होती है, जैसे लता वाले पौधे फैलते हैं, जबकि फलदार पौधे लंबे होते हैं। इस मामले में, इस उपकरण को इस तरह ऊंचाई पर लगाया जाता है कि औसत ऊंचाई पर बैठे कीट इसकी तरफ आकर्षित हो जाएँ। सबसे बड़ी बात इस उपकरण की कीमत बहुत काम है । यह 2500 से शुरू हो कर दस हजार  तक के हैं और सालों चलते हैं । मारे हुए कीटों को जमीन में दबा कर खाद भी तैयारी की जा सकती है । रात में खेतों में सांप जैसे सरीसृप या चूहों से बचाने में भी यह उपकरण काम का है ।

इस साधारण सी तकनीक का गाँव तक पहुंचने के रास्ते में बस एक ही व्यवधान है – ताकतवर अंतर्राष्ट्रीय  कीटनाशक लाबी,   जिसका अरबों का उत्पाद यह बगैर खर्च का उपकरण एक झटके में बिकने से रोक सकता है । एकीकृत  कीट प्रबंधन और पर्यावरण  मित्र इस पहल को ब्लॉक या ज़िले के कृषि विभागकार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र से पाया जा सकता है और इस पर सरकार कुछ  मदद भी करती है , लेकिन अभी इनका व्यापक स्तर पर प्रचार बहुत कम है ।

 

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Why do border fishermen not become an election issue?

                          सीमावर्ती मछुआरे क्यों नहीं बनते   चुनावी मुद्दा ?                                                   पंकज चतुर्व...