सीमावर्ती मछुआरे क्यों नहीं बनते चुनावी मुद्दा ?
पंकज चतुर्वेदी
30 अप्रेल 2024 को पाकिस्तान के कराची की लांडी जेल में 18 से 26 माह तक बंद 36 मछुआरे एक नारकीय जीवन और जीवित रहने की आस खो देने के बाद भारत लौटने की आस निराशा में बदल गई । सूची जारी हुई , सामान बांधे गए और इधर भारत में भी परिवारों ने स्वागत की तैयारी कर ली थी । रिहा होने के कुछ घंटे पहले ही पाकिस्तान सरकार ने सुरक्षा का हवाला दे कर रिहाई को टाल दिया । सीमा पार से जींद कोई नहीं लौट , हाँ एक लाश जरूर आई । चुनाव की गर्मी में शायद ही किसी का ध्यान गया हो कि महाराष्ट्र के पालघर जिले के गोरतपाड़ा निवासी विनोद लक्ष्मण नामक मछुआरे की लाश भी वतन लौटी है । दुर्भाग्य से इनकी मौत 16 मार्च को हो गई थी और डेढ़ महीने से लाश मिट्टी के लिए तरस रही थी । यह समझना होगा मरने वाले विनोद जी हों या रिहा होने वाले और अब अनिश्चित काल तक फिर जेल मने रह गए 36 मछुआरे , ये बंदी नहीं, बल्कि तकदीर के मारे वे मछुआरे थे जो जल के अथाह सागर में कोई सीमा रेखा नहीं खिंचे होने के कारण सीमा पार कर गए थे और हर दिन अपनी जान की दुहाई मांग कर काट रहे थे।
भारत-पाकिस्तान की समुद्री सीमा पर मछली पकड़ने वाले अधिकांश
गुजरात के हैं। गुजरात देश के मछली
उत्पादन का पाँच फीसदी उपजाता है । सरकारी आँकड़े कहते हैं कि राज्य मेंकोई 1058
गांवों में 36980 नावों पर स्वर हो कर कोई छह लाख मछुआरे समुद्र में मछलियों की
जगह खुद के जाल में फँसने के भी में रहते हैं। जान लें इन नावों पर काम करने वाले
आसपास के राज्यों से आते हैं और उनकी संख्या भी लाखों में होती है । भारत की संसद
में 11 अगस्त 2023 को विदेश राज्य
मंत्री ने बताया था कि पाकिस्तानी जेलों
में भारत के 266 मछुआरे और 42 अन्य नागरिक
बंद हैं। जबकि भारतीय जेल में पाकिस्तान के 343 आम लोग और 74 मछुआरे बंद हैं । एक
तरफ मछुआरों को छोड़ने के प्रयास हैं तो दूसरी तरफ दोनों तरफ की समुद्री सीमओं के
रखवाले चौकन्ने हैं कि मछली पकड़ने वाली कोई नाव उनके इलाके में ना आ जाए। जैसे ही
कोई मछुआरा मछली की तरह दूसरे के जाल में फंसा, स्थानीय
प्रशासन व पुलिस अपनी पीठ थपथपाने के लिए उसे जासूस घोषित कर ढेर सारे मुकदमें ठोक देती हैं और पेट पालने
को समुद्र में उतरने की जान में जोखिम डालने वाला मछुआरा किसी अंजान जेल में
नारकीय जिंदगी काटने लगता है। सनद रहे यह दिक्कत केवल पाकिस्तान की सीमा पर ही
नहीं है, श्रीलंका के साथ भी
मछुआरों की धरपकड़ ऐसे ही होती रहती है लेकिन पाकिस्तान से लौटना सबसे मुश्किल है ।
कसाब वाले मुंबई हमले व अन्य कुछ घटनाओं के
बाद समुद्र के रास्तों पर संदेह होना लाजिमी है, लेकिन
मछुआरों व घुसपैठियों में अंतर करना इतना भी कठिन नहीं है जितना जटिल एक दूसरे देश
के जेल में समय काटना है। एक तो पकड़े गए
लोगों की आर्थिक हालत ऐसी नहीं होती कि वे पाकिस्तान में कानूनी लड़ाई लड़ सकें । दूसरा पाकिस्तान के
उच्चायोग के लिए मछुआरों के पकड़े जाने की घटना उनकी अधिक चिंता का विषय नहीं होती।
भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के
किनारे रहने वाले कोई 70
लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने
वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क
की सीमा में घुस रही है, वैसे
ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र की असीम
जल पर कैसे सीमा खींची जाए। कच्छ के रन के
पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले
रहा है। असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि
पानी से आए रोज जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है। दोनों मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60
मील यानि लगभग 100 किलोमीटर में
विस्तारित है। कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अंदाज नहीं रहता कि
वे किस दिशा में जा रहे हैं,
परिणामस्वरूप
वे एक दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं। कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती
है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुंचती।
जब से शहरी बंदरगाहों पर जहाजों की आवाजाही
बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने ,शहरी
सीवर डालने व अन्य किस्म के प्रदूषणों के कारण समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों
को मछली पकड़ने के लिए बस्तियों, आबादियों
और बंदरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है। जैसे ही खुले सागर
में आए तो वहां सीमाओं को तलाशना लगभग असंभव होता है और वहीं दोनों देशों के बीच के कटु संबंध, श
क और साजिशों की संभावनाओं (जो कई बार सच भी साबित होती है ) के शिकार मछुआरे हो जाते हैं।
जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की
पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाशी करता है। चूंकि इस तरह पकड़ लिए गए लोगों को वापिस भेजना सरल नहीं है,
सो
इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है। इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौडी तो
होता नहीं, सो ये ‘‘गुड वर्क’’
के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिये, जासूस,
खबरी
जैसे मुकदमें उन पर होते हैं। वे दूसरे तरफ की बोली-भाषा भी नहीं जानते, सो
अदालत में क्या हो रहा है,
उससे
बेखबर होते हैं। कई बार इसी का फायदा उठा
कर प्रोसिक्यूशन उनसे जज के सामने हां कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देश
द्रोह जैसे आरोप में दोषी बन जाते हैं।
कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास
पहुंचते हैं। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता
है। सालों-दशकों बीत जाते हैं और जब दोनों देशो की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा
दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है। कई बार तो इस जाल में नाबालिग
बच्चे फंस जाते हैं और फिर उनके साथ जो होता है उसके बाद वे मछली पकड़ने दरिया में उतरने से तौबा
कर लेते हैं ।
विचारणीय है कि आबादी के इतने बड़े हिस्से को
प्रभावित करन एवले इस गंभीर मसले पर कोई भी राजनीतिक दल इस चुनाव में बात तक नहीं
कर रहा है । समझा जा रहा है कि चुनावों पर पड़ने वाले प्रभावों के ही चलते 36
मछुआरों की वापीसी भी टाली गई। जबकि दोनों देशों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना
सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस
जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया
जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति
किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार
उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। पकड़े
गए लोगों की सूचना 24
घंटे में ही दूसरे देश को देना,
दोनों
तरफ माकूल कानूनी सहायत मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे
संयुक्त राष्ट्र के समुद्री सीमाई विवाद के कानूनों यूएनसीएलओ में वे सभी
प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है।
जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है।
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