My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

Book review of "Jal Maangta Jivan" by Rohit Kaoushik

पुस्तक : जल मांगता जीवन, लेखक : पंकज चतुर्वेदी, आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा, मूल्य : 300 रुपए
जल मांग रहा है जीवन
पुस्तक चर्चा - प्रख्यात पत्रकार रोहित कौशिक द्वारा 

अ नेक बुद्धिजीवियों द्वारा यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। यह चिंता बाजिब भी है, क्योंकि इस समय संपूर्ण देश जल संकट से जूझ रहा है। दुर्भाग्य यह है कि आज जल संकट को लेकर चिंता तो व्यक्त की जा रही है, लेकिन इस संकट से निपटने हेतु गंभीरता से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हालांकि इस जल संकट से देश का आम आदमी ही अधिक जूझ रहा है, लेकिन उसमें इस संकट से उबरने को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई देती है। इस निराशाजनक माहौल में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक पंकज चतुर्वेदी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जल मांगता जीवन’ इस मुद्दे पर हमारी आंखें खोलती है। इस दौर में जल और पर्यावरण पर लिखना और भाषण देना एक फैशन हो गया है। इस फैशन से अलग पंकज चतुर्वेदी ने जल संकट के मुद्दे पर गंभीरतापूर्वक कार्य किया है। पुस्तक को चार खंडों में विभाजित किया गया है- तालाब, नदी, समुद्र और भूजल।पुस्तक प्रसिद्ध लेखक और कार्टूनिस्ट आबिद सुरती की भूमिका से शुरू होती है। आबिद सुरती का मानना है कि पानी को हमने केवल प्राणहीन तरल पदार्थ के रूप में ही देखा है, जबकि पानी प्राणदायी भी है और प्राणयुक्त भी। आबिद जी ने पानी को आदर देने की सीख देते हुए पंकज चतुर्वेदी के कार्य को सटीक शब्दों में रेखांकित किया है। पंकज जी ने ‘पानी एक- रूप अनेक’ शीर्षक से लिखी प्रस्तावना में संक्षिप्त जल-शास्त्र लिख दिया है। पुस्तक के प्रथम खंड ‘तालाब’ में लेखक का मानना है कि समाज ने तालाब को नहीं, बल्कि अपनी तकदीर को मिटाया है। आजादी के समय हमारे देश में लगभग 24 लाख तालाब थे, लेकिन 2000-2001 के आंकड़ों के अनुसार आजादी के बाद करीब 19 लाख तालाब और जोहड़ समाप्त हो गए। लेखक ने बंुदेलखंड के छतरपुर, टीकमगढ़, उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर, हैदराबाद, कश्मीर, बंगलुरू, धारवाड़, हुबली, मैसूर, बीजापुर, दिल्ली और बस्तर के तालाबों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। लेखक की सबसे बड़ी चिंता तालाबों को पाटकर उनपर हो रहे अवैध निर्माण को लेकर है। दरअसल, तालाबों की दुर्दशा के मामले में पूरे देश की ही हालत चिंताजनक है। पहले हर इलाके में बेहतरीन तालाब होते थे। ये तालाब जहां एक ओर जल उपलब्ध कराते थे, वहीं दूसरी ओर हमारी अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करते थे। मछली, कमल गट्टा, सिंघाडा और चिकनी मिट्टी के माध्यम से तालाब हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। लेकिन भौतिकता की आंधी ने हमारी जिंदगी से तालाबों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। पुस्तक के द्वितीय खंड ‘नदी’ में लेखक ने नदियों के सामने तीन तरह के संकट बताए हैं- पानी की कमी, मिट्टी का आधिक्य और प्रदूषण। लेखक का मानना है कि आधुनिक युग में नदियों को सबसे बड़ा खतरा प्रदूषण से है। इस खंड में पंकज जी ने यमुना, हिंडन, सोन नदी, नर्मदा, गोमती, कावेरी, अडयार और कूवम जैसी नदियों के संकट पर बात की है। दरअसल गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी सहित देश की 14 प्रमुख नदियों में देश का 85 प्रतिशत पानी प्रवाहित होता है। ये नदियां इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं कि देश की 66 फीसद बीमारियों का कारण इनका जहरीला जल है। यही कारण है कि देश की कुल 445 नदियों में आधी नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है। प्रदूषित नदियों की सूची में पहले स्थान पर महाराष्ट्र है, जहां 28 नदियां प्रदूषित हैं। दूसरे स्थान पर गुजरात है, जहां 19 नदियां प्रदूषित हैं। तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है जहां 12 प्रदूषित नदियां हैं। पुस्तक के तृतीय खंड ‘समुद्र’ में लेखक का मानना है कि भारत ही नहीं, अपितु दुनिया के समुद्री तटों पर पेट्रोलियम पदार्थों और औद्योगिक कचरे से भयावह पर्यावरणीय संकट पैदा हो रहा है। यही कारण है कि समुद्र का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लेखक ने विभिन्न समुद्री तटों पर पसरे संकट की चर्चा की है। दरअसल, लगातार प्रदूषण और लापरवाही के चलते हमारे सागर बेहद दूषित हो रहे हैं, जिसका व्यापक असर भारत ही नहीं बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के पर्यावरण पर पड़ रहा है। तेल के रिसाव, तेल टैंकों के टूटने व धोने से समुद्र का पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। लगभग 15 दिन में एक बार समुद्री तल पर दो हजार मीट्रिक टन से भी ज्यादा तेल फैलने व आग लगने की घटनाएं औसतन होती हैं। वहीं भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण उत्तर प्रदेश के अनेक जिले भूकंप संवेदनशील हो गए हैं। इन स्थानों पर कभी भी बड़ा भूकंप तबाही मचा सकता है।पुस्तक के चतुर्थ खंड ‘भूजल’ में लेखक ने बताया है कि प्रदूषित भूजल और भूजल के दोहन से हमें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह दुर्भाग्य ही है कि प्रदूषित भूजल के कारण गांव-गांव में कैंसर जैसी बीमारियों में वृद्धि हो रही है। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में प्रदूषित भूजल की चर्चा की है। लेखक ने पुस्तक में जल संकट और जल के विभिन्न स्रोतों पर आंकड़ों सहित विस्तार से प्रकाश डाला है। इसलिए जल से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर संदर्भ ग्रंथ के रूप में भी इस पुस्तक का उपयोग किया जा सकेगा। सहज, सरल और रोचक भाषा में लिखी गई यह पुस्तक जल संकट की गहनता से पड़ताल करती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

After all, why should there not be talks with Naxalites?

  आखिर क्यों ना हो नक्सलियों से बातचीत ? पंकज चतुर्वेदी गर्मी और चुनाव की तपन शुरू हुई   और   नक्सलियों ने धुंआधार हमले शुरू कर दिए , हा...