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रविवार, 22 सितंबर 2019

Not raining , dams are main cause of flood

बाढ नहीं बांध मचा रहे हैं तबाही 
पंकज चतुर्वेदी

अजीब विडंबना है कि जो मध्यप्रदेश अभी दो महीने पहले तक सूखे की आशंका से कांप रहा था, अब बरसात से हो रही तबाही से टूट रहा है। प्रदेश की जल कुडली बांचे तो लगता है कि प्रकृति चाहे जितनी वर्षा कर दे, यहां की जल -निधियां इन्हें सहेजने में सक्षम हैं। लेकिन अंधाधुध रेत-उत्खनन, नदी क्षेत्र में अतिक्रमण, तालाबों  के गुम होने के चलते ऐसा हो नहींे पा रहा है और राज्य के चालीस  फीसदी हिस्से में शहरों  में नदियां घुस गई हैं। इससे बदतर हालात तो रेगिस्तानी राज्य राजस्थान के हैं।  कोटा जैसे शहरों में नावें चल रही हैं। पंजाब, हिमाचल प्रदेश से ले कर केरल और उत्तर प्रदेश तक कुदरत की नियामत कहलाने वाला पानी अब कहर बना हुआ है। जरा बारिकी से देखें तो इस बाढ़ का असल कारण वे बांध हैं  जिन्हें भविष्य  के लिए जल-संरक्षण या बिजली उत्पापन के लिए अरबों रूपए खर्च कर बनाया गया था। किन्हीं बांधें की उम्र पूरी हो गईग् तो कही सिल्टेज है और कई जगह जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे के चलते अचानक तेज बरसात के अंदाज के मुताबिक उसकी संरचना ही नहीं रखी गई।  जहां-जहां बांध के दरवाजे खेले जा रहे हैं या फिर ज्यादा पानी जमा करने के लालच में खोले नहीं जा रहे, पानी बस्तियोंमें घुस रहा है। संपत्ति का नुकसान और लोगों की मौत का आकलन करें तो पाएंगे कि बांध महंगा सौदा रहे हैं।
सनद रहे इस साल अभी तक बाढ़ की चपेट मे आ कर 1422 लोग जान गंवा चुके हैं और इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र 317 में हैं। मध्य प्रदेश में मौत का आंकड़ा 200 पर है।  ये मौतें असल में पानी के बस्ती में घुसने या तेज धार में फंसने के कारण हुई हैं। अभी तक  बाढ़ के कारण संपत्ति के नुकसान का सटीक आंकड़ा नहीं आया है लेकिन सार्वजनिक संपत्ति जैसे सउ़क आदि,खेतों में खड़ी फसल, मवेशी, मकान आदि की तबाही करोड़ो में ही है। जिस सरदार सरोवर को देश के विकास का प्रतिमान कहा जा रही है, उसे अपनी पूरी क्षमता से भरने की जिद में उसके दरवाजे खाले नहीं गए और मध्यप्रदेश के बड़वानी और धार जिले के कोई 45 गांव पूरी तरह नष्ट हो गए। निसरपुर, राजघाट, चिखल्दा आदि तो बड़े कस्बे हैं और उनमें कई दिनों से आठ से दस फुट पानी भरा है।
राजस्थान के 810 बांधों में से 388 लबालब हो गए और जैसे ही उनके दरवाजे खोले गए तो नगर-कस्बे जलमग्न थे। राज्य के 5 बड़े बांध कोटा बैराज, राणाप्रताप सागर, जवाहर सागर और माही बजाज के सभी गेट खोलने पड़े हैं। बीसलपुर बांध के भी 18 में से पहली बार 17 गेट खोले गए। कोटा, बारां, बूंदी, चित्तौड़गढ, झालावाड़ में बाढ़ के हालात बने हुए हैं। बारां, झालावाड़ में कई दिन स्कूल बंद रहे। कोटा में पानी चंबल नदी से करीब 100 फीट ऊपर बने मकानों तक पहुंच गया। हर जगह पानी के प्रकोप का कारण बांध थे। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी का जल स्तर बढ़ते ही होशंगाबाद के तवा बांध सभी 13 गेटों को 14-14 फुट खोल दिया गया और इसी के साथ कोई साढ़े तीन सौ किलोमीटर इलाके के खेत-बस्ती, सड़क सबकुछ पानी में डूब गए। मालवा अंचल के नीमच, मंदसौर में कई कस्बों की जल-समाधि का कारण गांधी सागर बांध के सभी दरवाजों को खोलने से उपजी लाखों क्यूसिक जल की बेकाबू गति था। इस बांध का जल-स्तर 1312 फुट को पार कर गया था गांधीसागर डेम का लेवल 1312 फीट तक पहुंच गया था और इसके सभी 19 दरवाजे खोलने से  4.76 लाख क्यूसेक पानी निकला। मप्र के ही जबलपुर के बरगी बांध का जलस्तर 422.90 मीटर पहुंच गया इसके सभी 21 गेटों से . एक बार में 7498 क्यूसेक पानी छोड़ा गया और कोई सात जिलों मे बाढ़ आ गई। मध्यप्रदेश के तो 35 जिलों में छोटे-बड़े बांधों के दरवाजे खुलने से तबाही हुई। आजाद भारत के पहले बड़े बांध ,बिलासपुर जिले में स्थित भाखड़ा बांध के फ्लड गेट खोल कर जैसे ही करीब 63 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया पंजाब व हिमाचल के कई इलाकों में बाढ़ आ गई। खासतौर पर सतलुज के किनारे बसे इलाकांमें ज्यादा पानी भरा। दक्षिणी राज्यों, खासतौर पर केरल में  लगातार दूसरे साल बाढ़ के हालात के लिए पर्यावरणीय कारकों के अलावा बेतहाशा बांधों की भूमिका अब सामने आ रही है। उ.प्र में गंगा व यमुना को जहां भी बांधने के प्रयास हुए, वहां इस बार जल-तबाही हे। दिल्ली में इस बार पानी बरसा नहीं लेकिन हथिनि कुड बेराज में पानी की आवक बढ़ते ही दरवाजे खाले जाते हैं व दिल्ली में हजारों लोगों को विस्थापित करना पड़ता है।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय  के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत देश में पिछले 65 वर्षाे के दौरान बाढ़ के कारण 1.07 लाख लोगों की मौत हुई, आठ करोड़ से अधिक मकान नष्ट हुए और 25.6 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में 109202 करोड़ रूपये मूल्य की फसलों को नुकसान पहुंचा है। इस अवधि में बाढ़ के कारण देश में 202474 करोड़ रूपये मूल्य की सड़क, पुल जैसी सार्वजनिक संपत्ति पानी में मिल गई। मंत्रालय बताता है कि बाढ़ से प्रति वर्ष औसतन 1654 लोग मारे जाते हैं, 92763 पशुओं का नुकसान होता है। लगभग 71.69 लाख हेक्टेयर क्षेत्र जल प्लावन से बुरी तरह प्रभावित होता है जिसमें 1680 करोड़ रूपये मूल्य की फसलें बर्बाद हुईं और 12.40 लाख मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सन 1951 में भारत की बाढ़ ग्रस्त भूमि की माप एक करोड़ हेक्टेयर थी । 1960 में यह बढ़ कर ढ़ाई करोड़ हेक्टेयर हो गई । 1978 में बाढ़ से तबाह जमीन 3.4 करोड़ हेक्टेयर थी आज देश के कुल 329 मिलियन(दस लाख) हैक्टर में से चार करोड़ हैक्टर इलाका नियमित रूप से बाढ़ की चपेट में हर साल बर्बाद होता है। वर्ष 1995-2005 के दशक के दौरान बाढ़ से हुए नुकसान का सरकारी अनुमान 1805 करोड़ था जो अगल दशक यानि 2005-2015 में 4745 करोड़ हो गया हे। यह आंकड़ा ही बानगी है कि बाढ़ किस निर्ममता से हमारी अर्थ व्यवस्था को चट कर रही है। 
मौजूदा हालात में बाढ़ महज एक प्राकृतिक प्रकोप नहीं, बल्कि मानवजन्य साधनों का त्रासदी है । कुछ लोग नदियों को जोड़ने में इसका निराकरण खोज रहे हैं। हकीकत में नदियों के प्राकृतिक बहाव, तरीकों, विभिन्न नदियों के उंचाई-स्तर में अंतर जैसे विशयों का हमारे यहां कभी निश्पक्ष अध्ययन ही नहीं किया गया और इसी का फायदा उठा कर कतिपय ठेकेदार, सीमेंट के कारोबारी और जमीन-लोलुप लोग इस तरह की सलाह देते हैं। पानी को स्थानीय स्तर पर रोकना, नदियों को उथला होने से बचाना, बड़े बांध पर पाबंदी , नदियों के करीबी पहाड़ों पर खुदाई पर रोक और नदियों के प्राकृतिक मार्ग से छेड़छाड़ को रोकना कुछ ऐसे सामान्य प्रयोग हैं, जोकि बाढ़ सरीखी भीशण विभीशिका का मुंह-तोड़ जवाब हो सकते हैं।
पानी इस समय विष्व के संभावित संकटों में षीर्श पर है । पीने के लिए पानी, उद्योग , खेेती के लिए पानी, बिजली पैदा करने को पानी । पानी की मांग के सभी मोर्चों पर आषंकाओं व अनिष्चितता के बादल मंडरा रहे हैं । बरसात के पानी की हर एक बूंद को एकत्र करना व उसे समुद्र में मिलने से रोकना ही इसका एकमात्र निदान है। इसके लिए बनाए गए बड़े भारी भरकम बांध कभी विकास के मंदिर कहलाते थे । आज यह स्पश्ट हो गया है कि लागत उत्पादन, संसाधन सभी मामलों में ऐसे बांध घाटे का सौदा सिद्ध हो रहे हैं । विष्व बांध आयोग  के एक अध्ययन के मुताबिक समता, टिकाऊपन, कार्यक्षमता, भागीदारीपूर्ण निर्णय प्रक्रिया और जवाबदेही जैसे पांच मूल्यों पर आधारित है और इसमें स्पश्ट कर दिया गया है कि ऐसे निर्माण उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं ।  यदि पानी भी बचाना है और तबाही से भी बचना है तो नदियां को अविरल बहने दें और उसे बीते दो सै साल के मार्ग पर कोई निर्माण न करें।

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