नाबदान सी हिंडन पर देवताओं
का आमंत्रण
कार्तिक शुक्ल की पूर्णिमा
पर बनारस के घाट पर दीवाली जैसी रोशनी की जाती है , कहते हैं उस दिन सारे देवता
धरती पर आते हैं और देव दीपावली मनाई जाती है. ठीक इसी सोच के साथ सन २०१३ में
गाज़ियाबाद और दिल्ली के बीच बहने वाली , यमुना की सह्यात्रिनी हिंडन के घाट पर इस
सोच के साथ “देव दीपावली “ की शुरुआत हुई कि कोई देव आएगा और इस नाले से बदतर ,
लगभग मर गई हिंडन के दिन बहुरेंगे , चूँकि
इस विचार को देने वाले नवनीत सिंह मूल रूप
से बनारस के थे सो साल में कम से कम एक दिन कुछ लोग यहा एकत्र होने लगे – हालाँकि
ऐसा नहीं कि लोग इसके घात पर आते नहीं हैं – आते हैं—क्योंकि इसके तट पर ही अंतिम
संस्कार होते हैं—इस बार तो कोविड ने इस नदी के किनारों पर दूर दूर तक मौत का
रौद्र रूप देखा और अपनों को विदा करने आये लोगों ने नदी की लाश भी देखी .
हिंडन निकलती तो सहारनपुर
से आगे से हिम्च्छादित पर्वत से है लेकिन
सहारनपुर आते आते ही इसमें पानी रह नहीं जाता—आगे चल कर इसमें कारखानों की गंदगी,
आवासीय नाबदान मिलता है और गाज़ियाबाद आते आते इसमें ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो
जाती है – यह भी समझ लें कि गाज़ियाबाद शहर बसा ही इस लिए था कि यहाँ हिंडन का पावन
जल था –
जैसा संघ का प्रिय शगल है
नाम बदलना – सो इसका नाम हर्नंदी कर दिया गया और इसका उल्लेख कहीं प्राच्य
ग्रन्थों में बता दिया गया—हमारे दोस्त प्रशांत वत्स हरनंदी कहीन नाम से पत्रिका
निकाल कर लोगों को इसकी दुर्गति के बारे में जाग्रत करते रहे – इस बार की देव
दीपावली सी लिए ग़मगीन थी कि हमारे दोनों साथी – नवनीत जी और प्रशांत जी असामयिक
काल के गाल में समा गए , प्रशासन ने हिंडन के इस तट का नाम – नवनीत घाट कर दिया,
वहीँ एक सरोवर का नाम प्रशांत के नाम पर किया जा रहा है .
आज हर बार से ज्यादा भीड़ थी
हिंडन घाट पर—एक तरफ नवनीत और प्रशांत के साथी थे , तो दूसरी तरफ एक और संस्था ने
जमावड़ा कर लिया ,, नदी के किनारे दोनों
समूहों ने अपने अपने दीये जलाए- यहाँ तक
तो ठीक, लेकिन दोनों ने बिलकुल सट कर खड़े होने के बावजूद आरती अलग अलग कर रहे थे .
इस सारे तमाशे में हिंडन की
मौत से सभी बेखबर थे- जिसकी आरती हो रही थी वह नाले से बदतर थी – उसमें किनारे पर
ही घर से निकाले गए देवी देवताओं की मूर्तियाँ , पूजन सामग्री और दस दिन पहले
संपन्न छट की बकाया गंदगी भी – हिंडन में आज जो पानी दिख रहा था वह भी महज
छट के कारण दिख रहा था—जनता की मांग पर इस
पर्व पर सरकार गंग नहर से कुछ गंगा जल इसमें छोड़ देती है –
आखिर गाज़ियाबाद में हिंडन के यह हालात क्यों हैं ? असल में इसका कारण सियासत है – हिंडन को हरनंदी
या ऐसे ही नामों से पूजने या यहाँ साबरमती
जैसा रिवर फ्रंट बनाने वाले अधिकाँश बीजेपी के नेता हैं और उन्होंने माँ लिया है
कि नदी—पूजा- भगवन आदि उनका काम है – वहीं दुसरे राजनितिक दल हिंडन या पर्यावरण या
नदी के अस्तित्व के प्रति पूरी तरह बेपरवाह है – या उनके एजेंडे में यह है ही नहीं – अब केंद्र में सात साल, राज्य में पांच
साल और नगर निगम में पच्चीस साल से बैठे नेता भी जब इस पर आंसू बहाते हैं तो साफ़
हो जाता है कि इसे ही घडियाली आंसू कहते हैं – इनके लिए हिंडन का मसला एक बहाने से
लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर उन्हें अपना वोटर बनाए रखना है .
हिंडन की धारा को सिकोड़ कर,
मोड़ कर मेट्रो के पिलर बने, हिंडन की किनारों को सुखा कर बस्तिया बस गईं , हिंडन
में नगर निगम के ट्रकों को कूड़ा फैंकते कई
बार विक्रांत शर्मा ने कैमरे में पकड़ा – हिंडन पर आधा दर्जन फैसले एन् जी टी के
हैं और किसी पर भी अमल हुआ नहीं ---
हिंडन के मरने का अर्थ होगा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पर्यावरणीय तंत्र के एक बड़े हिस्से का समूल नाश हो जाना –
जान लें यह इलाका जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव में अत्यधिक वर्षा और शहरी बाढ़ से
प्रभावित संभावित क्षेत्र में से है – बाबाजी ने सत्ता में आते ही सौ दिन में
तालाब विकास प्राधिकरण के लिखित वायदे
किये थे – हिंडन बेसिन के नाम पर यदि संजय कश्यप जैसे विचारवान लोगों को अलग कर
दिया जाए तो कुछ एक तालाब के नाम पर
मशीने लगवा कर गड्ढे खुदवाने या ऐसे ही हरकतों में लिप्त रहे हैं ----
हिंडन नदी को मैंने
सहारनपुर के बहादुरपुर गाँव से ले कर उसके यमुना में मिलन – ग्रेटर नोयडा से आगे
मोम्नाथल तक खुद देखा है --- यदि इस पर ईमानदारी से काम करना है तो पहले शहरी निकायों को इसमें गंदा पानी मिलाने से
रोकने पर काम करना होगा- फिर इसके किनारे के गाँवों इमं जागरूकता अभियान – जैसे कम कीटनाशक का इस्तेमाल , गंदगी पर काम करना होगा – यूपी
में एक माफिया ऐसा भी है जो सरकारी महकमों और आई आई टी में बैठे पैसे ले कर फर्जी
रिपोर्ट बनाने वालों से मिल कर हिंडन को नदी की जगह निस्तार का नाला सिद्ध करने
में लगा है
गाज़ियाबाद में यदि केवल
हिंडन किनारे आधा किलोमीटर पर कूड़ा डम्प करने, कब्जे हटाने, नालों पे एसटीपी लगाने
का काम तो एक महीने में किया जा सकता है –लेकिन असल में इच्छाशक्ति है ही नहीं –
यह केवल एक धार्मिक मसला है – और उसका भयादोहन आकर वोट निकालने का .
आज शाम हिंडन किनारे की हाल
देख लें और सोचें कि क्या इसकी आरती करने वाले सच सच में इसकी इज्जत, आस्था या सरोकार
रखते हैं ?
#polluted Hindon
# careless ghaziabad