आसान नहीं पाक का पानी रोकना
पंकज चतुर्वेदी
पाक सरकार पोषित आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत ने पाकिस्तान को जाने वाली नदियों का पानी रोकने पर विचार की घोषणा क्या की, कुछ लोग मान बैठे कि यह रातों-रात संभव है। भारतीय वायुसेना द्वारा हाल के बालाकोट हवाई हमले से स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान लातों का भूत है, वह पानी या टमाटर से मानने वाला है नहीं। वैसे भी पानी रोकने का काम कोई बटन दबाने वाला है नहीं और पाकिस्तान को तत्काल जवाब देकर ही सुधारा जा सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी नदी-घाटी प्रणालियों में से एक सिंधु नदी की लंबाई कोई 2880 किलोमीटर है। सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है। अनुमान है कि कोई 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं। सिंधु नदी तंत्र की छह नदियों में कुल 168 मिलियन एकड़ की जल निधि है। इसमें से भारत अपने हिस्से का 95 फीसदी पानी इस्तेमाल कर लेता है। शेष पांच फीसदी पानी रोकने के लिए अभी कम से कम छह साल लगेंगे और इसकी कीमत आएगी 8327 करोड़।
तिब्बत में कैलाश पर्वत शृंखला से बोखार-चू नामक ग्लेशियर (4164 मीटर) के पास से अवतरित सिंधु नदी भारत में लेह क्षेत्र से ही गुजरती है। लद्दाख सीमा को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर में गिलगित के पास दार्दिस्तान क्षेत्र में इसका प्रवेश पाकिस्तान में होता है। पंजाब का जिन पांच नदियों राबी, चिनाब, झेलम, ब्यास और सतलुज के कारण नाम पड़ा, वे सभी सिंधु की जल-धारा को समृद्ध करती हैं। सतलुज पर ही भाखड़ा-नंगल बांध हैं।
सन् 1947 में आजादी के बाद से ही दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवाद चलता रहा। दस साल तक बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को कराची में दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर समझौता हुआ। भारत-पाकिस्तान के बीच इस समझौते की नजीर सारी दुनिया में दी जाती है कि तीन-तीन युद्ध और लगातार तनावग्रस्त ताल्लुकातों के बावजूद दोनों में से किसी भी देश ने कभी इस संधि को नहीं तोड़ा। इस समझौते के मुताबिक सिंधु नदी की सहायक नदियों को दो हिस्सों— पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया। सतलुज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी क्षेत्र की नदी कहा गया। पूर्वी नदियों के पानी का पूरा हक भारत के पास है तो पश्चिमी नदियों का पाकिस्तान के पास। बिजली, सिंचाई जैसे कुछ सीमित मामलों में भारत पश्चिमी नदियों के जल का भी इस्तेमाल कर सकता है।
पुलवामा हमले के बाद सिंधु नदी का पानी रोकने की बात भी हुई है। दरअसल, पानी की बात केवल सिंधु नदी की नहीं होती, इसके साथ असल में पंजाब की पांच नदियों के पानी का मसला है। सनद रहे कि भारत रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध बनाना चाहता था, लेकिन इस परियोजना को सन् 1995 से रोका गया है। ठीक इसी तरह से समय-समय पर भारत ने अपने हिस्से की पूर्वी नदियों का पानी रोकने के प्रयास किए लेकिन सामरिक दृष्टि से ऐसी योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं। लेकिन अब शाहपुर कंडी के अलावा सतलुज-व्यास लिंक योजना और कश्मीर में उझा बांध पर भी काम हो रहा है। इससे भारत अपने हिस्से का सारा पानी इस्तेमाल कर सकेगा।
वैसे भी भारत-पाक की जल-संधि में विश्व बैंक आदि कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं और उन्हें नजरअंदाज कर पाकिस्तान का पानी रोकना कठिन होगा। हां, पाकिस्तान की सरकार का आतंकवादी गतिविधियों में सीधी भागीदारी सिद्ध करने के बाद ही यह संभव होगा। यदि हम नदी का पानी रोकते हैं तो उसे सहेज कर रखने के लिए बड़े जलाशय, बांध चाहिए और वहां जमा पानी के लिए नहरें भी। सिंधु घाटी के नदी तंत्र को गांगेय नदी तंत्र अर्थात गंगा-यमुना से जोड़ना तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है। यदि पानी रोकने का प्रयास किया गया तो जम्मू, कश्मीर, पंजाब आदि में जलाभाव हो जाएगा।
दरअसल, अपने हिस्से की नदियों का पूरा पानी इस्तेमाल करने के लिए बांध आदि न बना पाने का असल कारण सुरक्षा व प्रतिरक्षा नीतियां हैं। सीमा के पार साझा नदी पर कोई भी विशाल जल-संग्रह दुश्मनी के हालात में पाकिस्तान के लिए ‘जल-बम’ के रूप में काम आ सकता है। यह जानना जरूरी है कि भारत में ये नदियां ऊंचाई से पाकिस्तान में जाती हैं। इनके प्राकृतिक जल-प्रवाह पर कोई भी रोक समूचे उत्तरी भारत के लिए बड़ा संकट हो जाएगा।
इसके अलावा भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों पर चीन के निवेश से कई बिजली परियोजनाएं हैं। यदि उन पर कोई विपरीत असर पड़ा तो चीन ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के माध्यम से हमारे समूचे पूर्वोत्तर राज्यों को संकट में डाल सकता है। अरुणाचल व मणिपुर की कई नदियां चीन की हरकतों के कारण अचानक बाढ़, प्रदूषण और सूखे को झेल रही हैं।