हमारा पीछा क्यों नहीं छोड़ता भ्रष्टाचार ?
पंकज चतुर्वेदीजब लोकपाल के लिए आंदोलन होता है तो लाखों लोग सड़क पर होते हैं , हमारे यहां सूचना का अधिकार जैसा ताकतवर कानून है, सौ दिन से ज्यादा दिक्कत में रह कर भी मुल्क का आम आदमी नोटबंदी को समर्थन देता है, हमारी अदालतों में बड़े से बड़े नेता व अफसर आचरण में शक होने के कारण कटघरे में खड़े हैं, इसके बावजूद आम आदमी ही नहीं अंतरराष्ट्रीय भी चेतावनी दे रही हैं कि भ्रष्टाचार और पारदर्षिता के मामले में भारत के हालात चिंताजनक हैं। वैसे पिछले बार की तमुलना में हालात दो पाइंट सुधरे हें लेकिन अभी भी हमारी गिनती ‘लाल रेखा’ में होती है। जर्मनी के बर्लिन स्थित भ्रष्टाचार आकलन एवं निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) द्वारा जारी सूची में भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के कुल 176 देशों में भारत का स्थान 79वां है। हालांकि अपने देष की व्यवस्थ को गरियाने से पहले कुछ आंकड़ों पर गौर करना होगा। रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड और डेनमार्क को सबसे कम भ्रष्टाचार वाला देश बताया गया है। सर्वेक्षण में इन देशों को 90 अंक मिले हैं, जबकि सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है और उसे केवल 10 अंक मिले हैं।‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2016’ में भारत और चीन को भ्रष्टाचार के मामले में एक साथ 79वें स्थान पर रखा गया है। टीआई के सर्वेक्षण में दोनों देशों ने 40-40 अंक हासिल किये हैं।
टीआई का मानना है कि भारत के स्वच्छता एवं पारदर्शिता अनुमान में दो अंकों की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन भ्रष्टाचार रैंकिंग में यह तीन स्थान नीचे चला गया है। पिछले साल ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2015’ में भारत 38 अंकों के साथ 76वें स्थान पर था जबकि इस साल यह 40 अंकों के साथ 79वें स्थान पर है। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि ‘लाल रेखा’ वाले सभी देष हमारे अंतरराश्ट्रीय ताकतवर सहयोगी संगठन ‘ब्रिक्स’ से ही हैं - चीन, ब्राजील भारत। यह भी ध्यान दें कि इस सूची में हमारे सभी पड़ेसी देष - बांग्लादेष(27),नेपाल(29), पाकिस्तान(32) और अफगानिस्तान (15) अंकों के साथ भ्रश्टतम देषों में दर्ज हैं। सबसे ज्यादा भ्रश्अ देष आतंकवाद व भुखमरी से ग्रस्त देष सोमालिया को कहा गया है जिसके अंक हैं - 10। यदि इन आंकड़ों का आकलन करें तो पाएंगे कि पिछड़ापन, विकासषीलता और लोकतंत्र के सूराख वाले देषों में पारदर्षिता की कमी है व वहां भ्रश्टाचार स्वाभाविक रूप से विकसित हो रहा है।
भारत के परिपेक्ष्य में इन आंकड़ों को देखें तो हाल ही के निर्वाचन आयोग के उस खुलासे से तस्वीर साफ हो जाती है जिसमें राजनीतिक दलों की चंदा प्रणाली व व्यय में पारदर्षिता ना होने की बात कही गई है। बकौल मुख्य चुनाव आयुक्त इस समय भारतीय निर्वाचन आयोग में 1900 से ज्यादा राजनीतिक दल नामांकित हैं लेकिन इनमें से 400 से अधिक दल आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा। आयोग ने आशंका जताई है कि ऐसे दलों को बनाने का असली मकसद कालेधन को सफेद करना होता है। उल्लेखनीय है कि पंजीकृत राजनीतिक दलों को चंदा लेने, आयकर से छूट जैसी कई सुविधांए मिली हुई हैं। यह भी जान लें कि केवल चुनाव ना लड़ने वाले 400 दल ही इस खेल में खलनायक नहीं हैं, कई ऐसे भी दल हैं जो नाम के लिए चुनाव लड़ते हैं व गंभीरता से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए तय सीमा से अधिक खर्च में भागीदार होते हैं। यही नहीं बहुत से वोट कटवा दल लोकतंत्र को इतना कमजोर कर रहे हैं कि अब कुल मतदाता के 14-15 फीसदी वोट ले कर भी लेाग मानननीय बन रहे हैं नतजतन उन्हें जनता का व्यापक समर्थन मिलता नहीं है। और ना ही वे जनभावनाओं की कदर करते हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने ऐसे दलों को छांट कर उन पर कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जैदी ने कहा, “इन दलों का नाम रद्द किए जाने के बाद उन्हें राजनीतिक दल के तौर पर मिलने वाले दान या आर्थिक मदद पर आयकर से मिलने वाली छूट बंद हो जाएगी। ”
हालांकि चुनाव आयोग अब कुछ दलों से उनकी आय-व्यय का ब्यौरा मांग रहा है ताकि उनकी मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया ष्ुारू की जा सके, लेकिन जान लें कि यह सबकुछ इतना आसान नहीं होगा। चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव आयोग से कभी चुनाव न लड़ने वाली पार्टियों को मिले चंदे का भी ब्योरा मांगा है। जैदी के अनुसार चुनाव आयोग अब हर साल सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों की जांच की जाएगी और किसी तरह की अनियमितता पाए जाने पर उन पर कार्रवाई की जाएगी। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने देष के राजनीतिक दलों के काला धन में लबालब होने की जो बात कही, यह पहली बार नहीं है। इससे पहले सन 2011 में भी एस.वाय. कुरेषी के काल में इस पर गंभीर कदम उठाने के सुझाव दिए गए थे, लेकिन किसी की भी इच्छा षक्ति चुनाव प्रक्रिया में षुचिता की नहीं रही है।
लोकतंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत लाने और उन्हें मिलने वाले चंदे पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं लेकिन इस मसले पर ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां एकमत हैं। इस मसले पर एक आरटीआई पर सुनवाई करते हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की वर्तमान सरकार की राय जाननी चाही थी तो सरकार ने राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के तहत लाने का विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि “अगर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के तहत लाया गया तो इससे उनके सुचारू कामकाज में अड़चन आएगी।” एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक (एडीआर) रिफॉर्म्स के साल 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश की छह राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय का 69.3 प्रतिशत “अज्ञात स्रोत” से आया था। एडीआर के आंकड़ों के अनुसार साल 2013-14 में छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के पास कुल 1518.50 करोड़ रुपये थे। राजनीतिक दलों में सबसे अधिक पैसा बीजेपी (44ः) के पास था। वहीं कांग्रेस (39.4ः), सीपीआई(एम) (8ः), बीएसपी (4.4ः) और सीपीआई (0.2ः ) का स्थान था। सभी राजनीतिक दलों की कुल आय का 69.30 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से आया था। राजनीतिक पार्टियों को अपने आयकर रिटर्न में 20 हजार रुपये से कम चंदे का स्रोत नहीं बताना होता। पार्टी की बैठकों-मोर्चों से हुई आय भी इसी श्रेणी में आती है। साल 2013-14 तक सभी छह राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय में 813.6 करोड़ रुपये अज्ञात लोगों से मिले दान था। वहीं इन पार्टियों को पार्टी के कूपन बेचकर 485.8 करोड़ रुपये की आय हुई थी। साल 2013-14 में कांग्रेस की कुल आय का 80.6 प्रतिशत और बीजेपी की कुल आय का 67.5 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से आया था।
चुनाव आयोग में इस समय पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1866 है जिसमें 56 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल हैं जबकि शेष गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल थे। पिछले लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान464 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार खड़े किये थे। चुनाव आयोग द्वारा एकत्र आंकड़ों को संसद में उपयोग के लिए विधि मंत्रालय के साथ साझा किया गया था। मंत्रालय का विधायी विभाग आयोग की प्रशासनिक इकाई है। चुनाव आयोग के अनुसार 10 मार्च 2014 तक देश में ऐसे राजनीतिक दलों की संख्या 1593 थी। 11 मार्च से 21 मार्च के बीच 24 और दल पंजीकृत हुए और 26 मार्च तक 10 और दल पंजीकतृ हुए। पिछले वर्ष मार्च के अंत तक चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1627 दर्ज की गई। आज यह 1800 से पार हो गई। यह चौंकाने वाली बात आयोग की छानबीन में उजागर हुई कि कुछ दल चंदे से उगाहे पैेसे को शेयर बाजार में लगा देते हैं व एवं कुछ गहने खरीद लेते हैं। राजनीतिक दल कों के गठन पर कड़ाई करने या उनको मिलने वाले चंदे पर छूट हटाने जैसे मसलों के विरोध में भी कई बातें कही जाती हैं। हालांकि सन 2011 में भी आयोग ने कुछ और सिफारिशें की थीं-. मसलन, राजनीतिक दलों को अपने खातों की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक या आयोग की ओर से अधिकृत लेखाकार से अपने एकाउंट का अंकेक्षण करवाएं ,खातों का सालाना लेखा-जोखा प्रकाशित करें आदि। सिफारिष यह भी थी के इन बातों को ना मानने वाले दल की मान्यता रद्द कर दी जाए।
यह बानगी है कि जब लोकतंत्र का आधार कहलाने वाले राजनीतिक दल औद्योगिक घरानों, संदिग्ध चरित्र के लोगों और अवैध कार्य में लगे लोगों का सहयोग ले कर चुनाव लड़ते हैं तो सत्ता आने के बाद ऐसे लोगों के हितों का ख्याल रखने का दवाब भी उन पर होता है। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसी अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा रियल इस्टेट, ठेकों, भाई-भतीजावाद, सोना व हीरा जैसे कीमती पदार्थों के रूप में समाज में रच-बस जाता है। भले ही दावे कुछ भी होते रहें, लेकिन देष को भ्रश्टाचार से समूल नश्ट करना है तो आगाज राजनीतिक दलों से हीक रना होगा।