आखिर क्यों उठता है बवंडर
पंकज चतुर्वेदी
हवा की विशाल मात्रा के तेजी से गोल-गोल घूमने पर उत्पन्न तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रीय बवंडर कहलाता है। यह सभ्ी जानते हैं कि पृथ्वी भौगोलिक रूप से दो गोलार्धाें में विभाजित है। ठंडे या बर्फ वाले उत्तरी गोलार्द्ध में उत्पन्न इस तरह के तूफानों को हरिकेन या टाइफून कहते हैं । इनमें हवा का घूर्णन घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में एक वृत्ताकार रूप में होता है। जब बहुत तेज हवाओं वाले उग्र आंधी तूफान अपने साथ मूसलाधार वर्षा लाते हैं तो उन्हें हरिकेन कहते हैं। जबकि भारत के हिस्से दक्षिणी अर्द्धगोलार्ध में इन्हें चक्रवात या साइक्लोन कहा जाता है। इस तरफ हवा का घुमाव घड़ी की सुइयों की दिशा में वृत्ताकार होता हैं। किसी भी उष्णकटिबंधीय अंधड़ को चक्रवाती तूफान की श्रेणी में तब गिना जाने लगता है जब उसकी गति कम से कम 74 मील प्रति घंटे हो जाती है। ये बवंडर कई परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता वाले होते है।
धरती के अपने अक्ष पर घूमने से सीधा जुड़ा है चक्रवती तूफानों का उठना। भूमध्य रेखा के नजदीकी जिन समुद्रों में पानी का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस या अधिक होता है, वहां इस तरह के चक्रवातों के उभरने की संभावना होती है। तेज धूप में जब समुद्र के उपर की हवा गर्म होती है तो वह तेजी से ऊपर की ओर उठती है। बहुत तेज गति से हवा के उठने से नीसे कम दवाब का क्ष्ज्ञेत्र विकसित हो जाता है। कम दवाब के क्षेत्र के कारण वहाँ एक शून्य या खालीपन पैदा हो जाता है। इस खालीपन को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवा तेजी से झपटती है । चूंकि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर एक लट्टू की तरह गोल घूम रही है सो हवा का रुख पहले तो अंदर की ओर ही मुड़ जाता है और फिर हवा तेजी से खुद घूर्णन करती हुई तेजी से ऊपर की ओर उठने लगती है। इस तरह हवा की गति तेज होने पर नीेचे से उपर बहुत तेज गति में हवा भी घूमती हुई एक बड़ा घेरा बना लेती है। यह घेरा कई बार दो हजार किलोमीटर के दायरे तक विस्तार पा जाता है। सनद रहे भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की घूर्णन गति लगभग 1038 मील प्रति घंटा है जबकि ध्रुवों पर यह शून्य रहती है।
इस तरह उठे बवंडर के केंद्र को उसकी आंख कहा जाता है। उपर उठती गर्म हवा समुद्र से नमी को साथ ले कर उड़ती है। इन पर धूल के कण भी जम जाते हैं और इस तरह संघनित होकर गर्जन मेघ का निर्माण होता है। जब ये गर्जन मेघ अपना वजन नहीं संभाल पाते हैं तो वे भारी बरसात के रूप में धरती पर गिरते हैं। चक्रवात की आँख के इर्द गिर्द 20-30 किलोमीटर की गर्जन मेघ की एक दीवार सी खड़ी हो जाती है और इस चक्रवाती आँख के गिर्द घूमती हवाओं का वेग 200 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो जाता है। कल्पना करें कि एक पूरी तरह से विकसित चक्रवात एक सेकेंड में बीस लाख टन वायु राशि खींच लेता है। तभी कुछ ही घंटों में सारे साल की बरसात हो जाती है।
इस तरह के बवंडर संपत्ति और इंसान को तात्कालिक नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, इनका दीर्घकालीक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता हे। भीषण बरसात के कारण बन गए दलदली क्षेत्र, तेज आंधी से उजड़ गए प्राकृतिक वन और हरियाली, जानवरों का नैसर्गिक पर्यावास समूची प्रकृति के संतुलन को उजाड़ देता है। जिन वनों या पेड़ों को संपूर्ण स्वरूप पाने में दशकों लगे वे पलक झपकते नेस्तनाबूद हो जाते हैं। तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी मे खारे पानी और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुए क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है।
बहरहाल हम केवल ऐसे तूफानों के पूर्वानुमान से महज जनहानि को ही बचा सकते हैं। एक बात और किस तरह से तटीय कछुए यह जान जाते हैं कि आने वाले कुछ घंटों में समुद्र में उंची लहरें उठेंगी और उन्हें तट की तरफ सुरक्षित स्थान की ओर जाना, एक शोध का विषय है। हाल ही में फणी तूफान के दौरान ये कछुए तट पर रेत के धोरों में कई घंटे पहले आ कर दुबक गए और तूफान जाने के बाद खुद ब खुद समुद्र में उतर गए। यह एक आश्चर्य से कम नहीं है।
आपदा से निबटने में भारत की तारीफ
संयुक्त राष्ट्र की आपदा न्यूनीकरण एजेंसी ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की ओर से चक्रवाती तूफान अम्फान की पूर्व चेतावनियों की “लगभग अचूक सटीकता” की सराहना की है। इन चेतावनियों ने लोगों को बचाने और जनहानि को काफी कम करने की सटीक योजना तैयार करने में अधिकारियों की मदद की और तट के पास इस चक्रवाती तूफान के टकराने के बाद ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकी। भारत में पिछले 20 साल में आए इस सबसे भयंकर तूफान ने भारत के पूर्वी राज्यों में कम से कम 84 लोगों की जान ले ली। कोलकाता शहर बुरी तरह तबाह हुआ। अस्सी टन के हवाई जहाज हिल गए। पश्चिम बंगाल, उड़िसा में समुद्र तट के पास स्थित इलाके और अन्य स्थान भारी बारिश के बाद जलमग्न हो गए जिससे करीब 11 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। भारतीय मौसम विभाग ने अम्फान को “अत्यंत भयावह चक्रवाती तूफान” की श्रेणी में रखा है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां अम्फान की गति पर करीब से नजर बनाए हुए हैं और बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे परिवारों को बचाने के इंतजाम कर रही हैं। यह तूफान पश्चिम बंगाल में दस्तक देने के बाद बांग्लादेश पहुंचेगा जिसे अलर्ट पर रखा गया है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि मामी मिजुतोरी ने कहा, “अत्यंत प्रतिकूल स्थितियों के प्रबंधन में भारत का हताहतों की संख्या बेहद कम रखने का दृष्टिकोण सेनदाई रूपरेखा के क्रियान्वयन में और ऐसी घटनाओं में अधिक जिंदगियां बचाने में बड़ा योगदान है।” मिजुतोरी आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-2030 के सेनदाई ढांचे की ओर इशारा करता है। यह 15 साल का ऐच्छिक, अबाध्यकारी समझौता है जिसके तहत आपदा जोखिम को कम करने में प्रारंभिक भूमिका राष्ट्र की है लेकिन इस जिम्मेदारी को अन्य पक्षधारकों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन और चक्रवात
यह तो हुआ चक्रवाती तूफान का असली कारण लेकिन भारत उपमहाद्वीप में बार-बार और हर बार पहले से घातक तूफान आने का असल कारण इंसान द्वारा किये जा रहे प्रकृति के अंधाधुध शोषण से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’ भी है। इस साल के प्रारंभ में ही अमेरिका की अंतरिक्ष शोध संस्था नेशनल एयरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ‘नासा ने चेता दिया था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और खूंखार होते जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है। यह बात नासा के एक अध्ययन में सामने आई है। अमेरिका में नासा के ‘‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’’ (जेपीएल) के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें औसत समुद्री सतह के तापमान और गंभीर तूफानों की शुरुआत के बीच संबंधों को निर्धारित करने के लिए उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर अंतरिक्ष एजेंसी के वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर (एआईआरएस) उपकरणों द्वारा 15 सालों तक एकत्र आकंड़ों के आकलन से यह बात सामने आई। अध्ययन में पाया गया कि समुद्र की सतह का तापमान लगभग 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर गंभीर तूफान आते हैं। ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’(फरवरी 2019) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक तूफान आते हैं। ‘जेपीएल’ के हार्टमुट औमन के मुताबिक गर्म वातावरण में गंभीर तूफान बढ़ जाते हैं। भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं।
चेतावनी की चुनौती डेढ शती
कोई 155 साल पहले, जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था, सन 1864 में देश के पूर्वी समुद्री तट पर दो भीषण तूफान आए - अक्तूबर में कोलकाता में और फिर नवंबर में मछलीपट्टनम में। अनगिनत लोग मारे गए और अकूत संपत्ति इस विपदा के उदरस्थ हो गई। उन दिनों कोलकाता देश की राजधानी था और व्यापार व फौज का मुख्य अड्डा। ब्रितानी सरकार ने तत्काल एक कमेटी गठित की ताकि ऐसे तूफानों की पहले से सूचना पाने का कोई तंत्र विकसित किया जा सके। और एक साल के भीतर ही सन 1865 में कोलकाता बंदरगाह ऐसा पहला समुद्र तट बन गया जहां समुद्री बवंडर आने की पूर्व सूचना की प्रणाली स्थापित हुई। सनद रहे भारत में मौसम विभाग की स्थापना इस केंद्र के दस साल बाद यानि 1875 में हुई थी।
सन 1880 तक भारत के पश्चिमी समुद्री तटों - मुंबई, कराची, रत्नागिरी, कारवाड़, कुमरा आदि में भी तूफान पूर्व सूचना के केंद्र स्थापित हो गए थे। मौसम विभाग की स्थापना और विज्ञान-तकनीक के विकास के साथ-साथ आकलन , पूर्वानुमान और सूचनओ को त्वरित प्रसारित करने की प्रणाली बदलती रहीं।
आजादी के बाद सन 1969 में भारत सरकार ने आंध्रप्रदेश में बार-बार आ रहे तूफान, पलरायन व नुकसान के हालातों के मद्देनजर एक कमेटी - सीडीएमसी (साईक्लोन डिस्ट्रेस मिटिगेशन कमेटी) का गठन किया ताकि चक्रवाती तूफान की प्राकृतिक आपदा से जन और संपत्त की हानि को कम से कम किया जा सके। उसी दौरान ओडिसा और पश्चिम बंगाल में भी ऐसी कमेटियां बनाई गईं जिनमें मौसम वैज्ञानिक, इंजीनियर, समाजशास्त्री आदि शामिल थे। इस कमेटियों ने सन 1971-72 में अपनी रिपोर्ट पेश कीं और सभी में कहा गया कि तूफान आने की पूर्व सूचना जितनी सटीक और पहले मिलेगी, हानि उतनी ही कम होगी। कमेटी के सुझाव पर विशाखपत्तनम और भुवनेश्वर में अत्याधुनिक मशीनों से लैस सूचना केंद्र तत्काल स्थापित किए गए।
भारतीय उपग्रहों के अंतरिक्ष में स्थापित होने और धरती की हर पल की तस्वीरें त्वरित मिलने के शानदार तकनीक के साथ ही अब तूफान पूर्वानुमान विभाग, चित्रों, इन्फ्रारेड चैनल, बादलों की गति व प्रकृति, पानी के वाष्पीकरण, तापमान आकलन जैसी पद्यतियों से कई-कई दिन पहले बता देता है कि आने वाला तूफान कब, किस स्थान पर कितने संवेग से आएगा। इसी की बदौलत ‘फणी’ आने से पहले ही ओडिशा सरकार ने 11 लाख से अधिक लोगों को 4400 से अधिक सुरक्षित आश्रय घरों में पहुंचा दिया। उनके लिए साफ पानी, प्राथमिक स्वास्थय , भेजन जैसी व्यवसथाएं बगैर किसी हड़बडाहट के हो गईं। जब 240 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से बवंडर उठेगा तो सड़क, पुल, इमारत, बिजली के खंभे, मोबाईल टावर आदि को नुकसान तो होगा ही, लेकिन इसनते भयावह तूफान को देखते हुए जन हानि बहुत कम होना और पुनर्निमाण का काम तेजी से शुय हो जाना सटीक पूर्वानुमान प्रणाली के चलते ही संभव हुआ।
तबाही का नाम क्यों व कैसे
इस बार के तूफान को ‘अम्फान’ नाम थाईलैंड ने दिया हैं। इसका थाई में उच्चारण होता है ‘उम पून’ और इसका अर्थ है आकाश। इसका सुझाव थाईलैंड ने सन 2004 में ही दे दिया था। पिछले साल ं आए तूफान का नाम था -फणी, यह सांप के फन का बांग्ला अनुवाद है। इस तूफान का यह नाम भी बांग्लादेश ने ही दिया था। जान लें कि प्राकृतिक आपदा केवल एक तबाही मात्र नहीं होती, उसमें भविष्य के कई राज छुपे होते हैं। तूफान की गति, चाल, बरसात की मात्रा जसे कई आकलन मौसम वैज्ञानिकों के लिए एक पाठशाला होते हैं। तभी हर तूफान को नाम देने की प्िरक्रया प्रारंभ हुई। विकसित देशो में नाम रखने की प्रणाली 50 के दशक से विकसित है लेकिन हिंद महासागर इलाके के भयानक बवंडरों के ठीक तरह से अध्ययन करने के इरादे से सन 2004 में भारत की पहल पर आठ देशों ने एक संगठन बनाया। ये देश चक्रवातों की सूचना एकदूसरे से साझा करते हैं। ये आठ तटीय देश हैं - ं भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड ं।
दरअसल तूफानों के नाम एक समझौते के तहत रखे जाते हैं। इस पहल की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में हेरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जो मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। 1953 से अमेरिका केवल महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक नर व फिर एक नारी नाम रखा जाता है।
भारतीय मौसम विभाग के तहत गठित देशों का क्रम अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर से तय होते हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठ देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची में मौजूद अलग सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इससे तूफान की न केवल आसानी से पहचान हो जाती है बल्कि बचाव अभियानों में भी इससे मदद मिलती है। भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों ।किसी भी नाम को दोहराया नहीं जाता है। अब तक चक्रवात के करीब 64 नामों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। कुछ समय पहले जब क्रम के अनुसार भारत की बारी थी तब ऐसे ही एक चक्रवात का नाम भारत की ओर से सुझाये गए नामों में से एक ‘लहर’ रखा गया था।
इस क्षेत्र में जून 2014 में आए चक्रवात नानुक का नाम म्यांमार ने रखा था। साल 2013 में भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए पायलिन चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था । इस इलाक़े में आए एक अन्य चक्रवात ‘नीलोफ़र का नाम पाकिस्तान ने दिया था। पाकिस्तान ने नवंबर 2012 में आए चक्रवात को ‘नीलम’ नाम दिया था। .इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफ़ी आम नाम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और ज़रूरत पड़ने पर सूची फिर से भरी जाती है.
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर हिन्द महासागर की सीमा वाले देशों को प्रभावित करने वाले तूफानों की ताकत में इजाफा हो रहा है। इससे भारतए बांग्लादेश समेत कई देश प्रभावित हो रहे हैं। पर्यावरण थिंक टैंक क्लाईमेट ट्रेंड ने अपने अध्ययन में यह दावा किया है।
अध्ययन कहता है कि मौजूदा तूफान अम्फान इसी के चलते सुपर साइक्लोन में परिवर्तित हो गया। क्लाईमेट ट्रेंड के अनुसारए समुद्र के सतह और धरती के ज्यादा गर्म होने से चक्रवाती तूफानों की ताकत में इजाफा हो रहा है। यदि समुद्र की सतह का तापमान ज्यादा है तो इसका असर यह होता है कि चक्रवाती हवा की गति बढ़ जाती है। भारती उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राक्सी मैथ्यू कौल ने कहा कि हमारे शोध में पता चलता है कि बंगाल की खाड़ी तेजी से गर्म हो रही है। जो एक कमजोर तूफान को शक्तिशाली बना रही है।
अधिक तापमान ने चक्रवात को सुपर चक्रवात बनाया बंगाल की खाड़ी में मई के पहले दो सप्ताह के दौरान कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 32.34 डिग्री के बीच रहा जो सर्वाधिक है। यहएक चक्रवात को ताकत देकर सुपर चक्रवात बना देता है। आईआईटी भुवनेश्वर के पृथ्वीए महासागर और जलावयु विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ वीण् विनोज ने कहा कि देश में हर साल मानसून पूर्व चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है जिसकी वजह महासागरों की सतह का लगातार गर्म होते जाना है। उन्होंने कहा कि इस तूफान को सुपर साइक्लोन बनाने में लाकडॉण्उन की भी एक तरह से भूमिका है
मानव गतिविधियों और जलवायु और पर्यावरण पर उनके प्रभाव नेए चक्रवात अम्फान को कई तरीकों से प्रभावित किया हैए कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध किया है।
जलवायु परिवर्तन उस क्षति को बढ़ाता हुआ प्रतीत होता है जो चक्रवात कई तरह से उत्पन्न करता हैए जिसमें समुद्र की सतह का तापमान बढ़ाना शामिल है जो एक तूफान तक पहुंचने वाली अधिकतम संभावित ऊर्जा को बढ़ाता हैय तूफान के दौरान गिरने वाली वर्षा में वृद्धिय समुद्र का बढ़ता स्तरए जिससे बढ़ती दूरी अंतर्देशीय है कि तूफान बढ़ता हैय और तूफान के कारण और अधिक तेज़ी से ताकत मिलती है।
वैज्ञानिक वायु प्रदूषण और चक्रवात के बीच एक जटिल संबंध की खोज कर रहे हैंए और यह संभव है कि सीओवीआईडी .19 प्रतिबंधों के कारण क्षेत्र में वायु प्रदूषण में कमी ने चक्रवात अम्फान को प्रभावित किया हो। हालांकि वे इस बात से सहमत हैं कि आगे की जांच की आवश्यकता है।
मानव.कारण वायु प्रदूषण से एरोसोलए विभिन्न तरीकों से चक्रवातों की ताकत को आंशिक रूप से कम कर सकते हैंए क्योंकि वे सूर्य की रोशनी को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकते हैंए जिससे यह थोड़ा ठंडा हो जाता है। वायु प्रदूषण में कमी से बंगाल की खाड़ी में समुद्र की सतह का तापमान थोड़ा बढ़ सकता हैए जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ाएगा।
इसके अलावाए एरोसोल बादलों को अधिक आसानी से वर्षा का उत्पादन कर सकता हैए जो चक्रवातों के गठन को सीमित करता है। इन कारकों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में कमी से चक्रवात की ताकत बढ़ेगी।
लेकिन एक अन्य कारक जो चक्रवात की ताकतए विंड शीयर को प्रभावित करता हैए इसका वायु प्रदूषण के साथ विपरीत संबंध है। उच्च वायु प्रदूषण पवन कतरनी को कम करता हैए जो आम तौर पर मजबूत चक्रवातों को बनाने की अनुमति देता है। तो वायु प्रदूषण कम हो सकता हैए इस संबंध मेंए चक्रवात की ताकत को सीमित करें।
जबकि वायु प्रदूषण में कमी और चक्रवात अम्फान के बीच एक संबंध हो सकता हैए यह कहना जल्द ही ठीक है कि तूफान पर क्लीनर हवा का किस तरह का प्रभाव पड़ा है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मौसम विज्ञान के वैज्ञानिक और जलवायु परिवर्तन ;प्च्ब्ब्द्ध और क्रायोस्फीयर पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के प्रमुख लेखकए रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल ने कहारू ष्हमारे अनुसंधान से पता चलता है कि उच्च महासागर का तापमान चक्रवातों के तीव्र तीव्रता के लिए अनुकूल है। उत्तर हिंद महासागर में।
श्वर्तमान मामले मेंए बंगाल की खाड़ी विशेष रूप से गर्म रही हैए जिसने एक अवसाद से एक चक्रवात तक और फिर बहुत कम समय में एक सुपर चक्रवात की तीव्र तीव्रता में कुछ भूमिका हो सकती है।
ष्उदाहरण के लिएए बंगाल की खाड़ी में कुछ ख़ुशबूओं ने मई के पहले दो हफ्तों तक लगातार 32.34 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान दर्ज किया। ये जलवायु परिवर्तन द्वारा संचालित रिकॉर्ड तापमान हैं जो हमने अब तक इतने उच्च मूल्यों को कभी नहीं देखा है। । ष्
कोल्ल ने कहा कि ये उच्च तापमान एक चक्रवात को सुपर.चार्ज कर सकते हैंए क्योंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात मुख्य रूप से समुद्र की सतह पर वाष्पीकरण से अपनी ऊर्जा खींचते हैं।
भुवनेश्वर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पृथ्वीए महासागर और जलवायु विज्ञान के स्कूल के सहायक प्रोफेसर वी। विनोज ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर के ऊपरी महासागरों की गर्मी सामग्री में वृद्धि के लिए अग्रणी है।
ष्यह भारतीय क्षेत्र के आसपास के समुद्री क्षेत्रों के लिए भी सही है। यह प्री.मानसून समय के दौरान हमारे क्षेत्र में चक्रवाती गतिविधियों की बढ़ती संख्या के कारणों में से एक है। हालांकिए अतीत की तुलना में अब जो अलग है वह दुनिया का सबसे बड़ा ब्व्टप्क् है। .19 ने भारत की अगुवाई में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में तालाबंदी की।
ष्इस लॉकडाउन ने वायुमंडल में मानव उत्सर्जन को काफी कम कर दिया है। इस कमी का मतलब है कि मानव निर्मित एरोसोल को हटाने के कारण सतह के वार्मिंग में वृद्धि हुई है और वायुमंडलीय वार्मिंग ;ब्लैक कार्बन जैसे एयरोसोल को अवशोषित करने वाले लोगों के कारणद्ध में इस दौरान काफी कमी आई है।
ष्यह सतह वार्मिंग बंगाल की खाड़ी में पानी के ऊपर फैली हुई है। इसलिएए ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव जो चक्रवात की ताकत को बढ़ाता हैए यदि कोई हैए तो अब इस मानव.प्रेरित लॉकडाउन प्रभाव के कारण प्रवर्धित किया गया है। यही कारण हो सकता है। ।उचींद एक सुपर साइक्लोन में मजबूत हो गया हैए दूसरा केवल 1999 के सुपर साइक्लोन के लिए।
उन्होंने कहाए ष्कुल मिलाकरए मुझे लगता है कि बंगाल की खाड़ी के ऊपर समुद्र के पानी के अतिरिक्त गर्म होने के कारण लॉकडाउन ने इस चक्रवात को मजबूत किया है। भविष्य में इसकी जांच की जरूरत होगी।ष्
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर हिन्द महासागर की सीमा वाले देशों को प्रभावित करने वाले तूफानों की ताकत में इजाफा हो रहा है। इससे भारत, बांग्लादेश समेत कई देश प्रभावित हो रहे हैं। पर्यावरण थिंक टैंक क्लाईमेट ट्रेंड ने अपने अध्ययन में यह दावा किया है।
अध्ययन कहता है कि मौजूदा तूफान अम्फान इसी के चलते सुपर साइक्लोन में परिवर्तित हो गया। क्लाईमेट ट्रेंड के अनुसार, समुद्र के सतह और धरती के ज्यादा गर्म होने से चक्रवाती तूफानों की ताकत में इजाफा हो रहा है। यदि समुद्र की सतह का तापमान ज्यादा है तो इसका असर यह होता है कि चक्रवाती हवा की गति बढ़ जाती है। भारती उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राक्सी मैथ्यू कौल ने कहा कि हमारे शोध में पता चलता है कि बंगाल की खाड़ी तेजी से गर्म हो रही है। जो एक कमजोर तूफान को शक्तिशाली बना रही है।
अधिक तापमान ने चक्रवात को सुपर चक्रवात बनाया बंगाल की खाड़ी में मई के पहले दो सप्ताह के दौरान कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 32-34 डिग्री के बीच रहा जो सर्वाधिक है। यहएक चक्रवात को ताकत देकर सुपर चक्रवात बना देता है। आईआईटी भुवनेश्वर के पृथ्वी, महासागर और जलावयु विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ वी. विनोज ने कहा कि देश में हर साल मानसून पूर्व चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है जिसकी वजह महासागरों की सतह का लगातार गर्म होते जाना है। उन्होंने कहा कि इस तूफान को सुपर साइक्लोन बनाने में लाकडॉ.उन की भी एक तरह से भूमिका है
मानव गतिविधियों और जलवायु और पर्यावरण पर उनके प्रभाव ने, चक्रवात अम्फान को कई तरीकों से प्रभावित किया है, कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध किया है।
जलवायु परिवर्तन उस क्षति को बढ़ाता हुआ प्रतीत होता है जो चक्रवात कई तरह से उत्पन्न करता है, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान बढ़ाना शामिल है जो एक तूफान तक पहुंचने वाली अधिकतम संभावित ऊर्जा को बढ़ाता है; तूफान के दौरान गिरने वाली वर्षा में वृद्धि; समुद्र का बढ़ता स्तर, जिससे बढ़ती दूरी अंतर्देशीय है कि तूफान बढ़ता है; और तूफान के कारण और अधिक तेज़ी से ताकत मिलती है।
वैज्ञानिक वायु प्रदूषण और चक्रवात के बीच एक जटिल संबंध की खोज कर रहे हैं, और यह संभव है कि सीओवीआईडी -19 प्रतिबंधों के कारण क्षेत्र में वायु प्रदूषण में कमी ने चक्रवात अम्फान को प्रभावित किया हो। हालांकि वे इस बात से सहमत हैं कि आगे की जांच की आवश्यकता है।
मानव-कारण वायु प्रदूषण से एरोसोल, विभिन्न तरीकों से चक्रवातों की ताकत को आंशिक रूप से कम कर सकते हैं, क्योंकि वे सूर्य की रोशनी को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकते हैं, जिससे यह थोड़ा ठंडा हो जाता है। वायु प्रदूषण में कमी से बंगाल की खाड़ी में समुद्र की सतह का तापमान थोड़ा बढ़ सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ाएगा।
इसके अलावा, एरोसोल बादलों को अधिक आसानी से वर्षा का उत्पादन कर सकता है, जो चक्रवातों के गठन को सीमित करता है। इन कारकों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में कमी से चक्रवात की ताकत बढ़ेगी।
लेकिन एक अन्य कारक जो चक्रवात की ताकत, विंड शीयर को प्रभावित करता है, इसका वायु प्रदूषण के साथ विपरीत संबंध है। उच्च वायु प्रदूषण पवन कतरनी को कम करता है, जो आम तौर पर मजबूत चक्रवातों को बनाने की अनुमति देता है। तो वायु प्रदूषण कम हो सकता है, इस संबंध में, चक्रवात की ताकत को सीमित करें।
जबकि वायु प्रदूषण में कमी और चक्रवात अम्फान के बीच एक संबंध हो सकता है, यह कहना जल्द ही ठीक है कि तूफान पर क्लीनर हवा का किस तरह का प्रभाव पड़ा है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मौसम विज्ञान के वैज्ञानिक और जलवायु परिवर्तन (प्च्ब्ब्) और क्रायोस्फीयर पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के प्रमुख लेखक, रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल ने कहारू ष्हमारे अनुसंधान से पता चलता है कि उच्च महासागर का तापमान चक्रवातों के तीव्र तीव्रता के लिए अनुकूल है। उत्तर हिंद महासागर में।
“वर्तमान मामले में, बंगाल की खाड़ी विशेष रूप से गर्म रही है, जिसने एक अवसाद से एक चक्रवात तक और फिर बहुत कम समय में एक सुपर चक्रवात की तीव्र तीव्रता में कुछ भूमिका हो सकती है।
ष्उदाहरण के लिए, बंगाल की खाड़ी में कुछ ख़ुशबूओं ने मई के पहले दो हफ्तों तक लगातार 32-34 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान दर्ज किया। ये जलवायु परिवर्तन द्वारा संचालित रिकॉर्ड तापमान हैं जो हमने अब तक इतने उच्च मूल्यों को कभी नहीं देखा है। । ष्
कोल्ल ने कहा कि ये उच्च तापमान एक चक्रवात को सुपर-चार्ज कर सकते हैं, क्योंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात मुख्य रूप से समुद्र की सतह पर वाष्पीकरण से अपनी ऊर्जा खींचते हैं।
भुवनेश्वर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पृथ्वी, महासागर और जलवायु विज्ञान के स्कूल के सहायक प्रोफेसर वी। विनोज ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर के ऊपरी महासागरों की गर्मी सामग्री में वृद्धि के लिए अग्रणी है।
ष्यह भारतीय क्षेत्र के आसपास के समुद्री क्षेत्रों के लिए भी सही है। यह प्री-मानसून समय के दौरान हमारे क्षेत्र में चक्रवाती गतिविधियों की बढ़ती संख्या के कारणों में से एक है। हालांकि, अतीत की तुलना में अब जो अलग है वह दुनिया का सबसे बड़ा ब्व्टप्क् है। -19 ने भारत की अगुवाई में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में तालाबंदी की।
ष्इस लॉकडाउन ने वायुमंडल में मानव उत्सर्जन को काफी कम कर दिया है। इस कमी का मतलब है कि मानव निर्मित एरोसोल को हटाने के कारण सतह के वार्मिंग में वृद्धि हुई है और वायुमंडलीय वार्मिंग (ब्लैक कार्बन जैसे एयरोसोल को अवशोषित करने वाले लोगों के कारण) में इस दौरान काफी कमी आई है।
ष्यह सतह वार्मिंग बंगाल की खाड़ी में पानी के ऊपर फैली हुई है। इसलिए, ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव जो चक्रवात की ताकत को बढ़ाता है, यदि कोई है, तो अब इस मानव-प्रेरित लॉकडाउन प्रभाव के कारण प्रवर्धित किया गया है। यही कारण हो सकता है। ।उचींद एक सुपर साइक्लोन में मजबूत हो गया है, दूसरा केवल 1999 के सुपर साइक्लोन के लिए।
उन्होंने कहा, ष्कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि बंगाल की खाड़ी के ऊपर समुद्र के पानी के अतिरिक्त गर्म होने के कारण लॉकडाउन ने इस चक्रवात को मजबूत किया है। भविष्य में इसकी जांच की जरूरत होगी।ष्