My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्ठ ब्लाॅग के पुरस्कार से सम्मानित
मंगलवार, 30 जून 2020
How traditional society save ecology
सोमवार, 29 जून 2020
dung can turn rural self dependency theory of country
शुक्रवार, 26 जून 2020
Mental health must be on priority of health policy of India
मानसिक इलाज की सुधरे दशा
अभी तीन साल पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और अखिल भारतीय आयुíवज्ञान संस्थान के एक शोध से पता चला था कि देश में चौथी सबसे बड़ी बीमारी अवसाद या डिप्रेशन है। इनमें से आधे से ज्यादा लोगों को यह ही पता नहीं है कि उन्हें किसी इलाज की जरूरत है। बढ़ती जरूरतें, जिंदगी में बढ़ती भागदौड़, रिश्तों के बंधन ढीले होना, इस दौर की कुछ ऐसी त्रसदियां हैं जो इंसान को भीतर ही भीतर खाए जा रही है। ये सब ऐसे विकारों को आमंत्रित कर रहा है, जिनके प्रारंभिक लक्षण नजर आते नहीं हैं, जब मर्ज बढ़ जाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। विडंबना है कि सरकार में बैठे नीति-निर्धारक मानसिक बीमारियों को अभी भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
इसे हास्यास्पद कहें या शर्म कि विज्ञान के इस युग में मनोविकारों को एक रोग के बजाय ऊपर वाले की नियति समझने वालों की संख्या बहुत अधिक है। तभी ऐसे रोगों के इलाज के लिए बहुत से लोग डॉक्टर के पास जाने के बजाय पीर-फकीरों, मजारों-मंदिरों में जाते हैं। सामान्य डॉक्टर मानसिक रोगों को पहचानने और रोगियों को मनोचिकित्सक के पास भेजने में असमर्थ रहते हैं। इसके चलते ओझा, पुरोहित, मौलवी, तथाकथित यौन विशेषज्ञ अवैध रूप से मनोचिकित्सक का काम कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वास्थ्य की अनुकूल चेतना है, ना कि केवल बीमारी की गैर मौजूदगी। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य, एक स्वस्थ शरीर का जरूरी हिस्सा है। यह हमारे देश की कागजी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में भी दर्ज है। वैसे 1982 में मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम शुरू हुआ था। आम डॉक्टर के पास आने वाले आधे मरीज उदासी, भूख, नींद और सेक्स इच्छा में कमी आना जैसी शिकायतें लेकर आते हैं। वास्तव में वे किसी ना किसी मानसिक रोग के शिकार होते हैं। देश भर में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए कोई 32 हजार मनोचिकित्सकों की जरूरत है, जबकि इनकी संख्या मुश्किल से नौ हजार है। इनमें भी तीन हजार तो चार महानगरों तक ही सिमटे हैं। यह रोग भयावह है और इसका इलाज लंबे समय तक चलता है, जो खर्चीला भी है। इसके बावजूद किसी भी स्वास्थ्य बीमा योजना में इसे शामिल नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बीमा नियामक संस्था से यह पूछा भी है कि मानसिक रोग को बीमा सुविधा के दायरे में क्यों नहीं लाया गया है।
उधर सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं बिल्कुल उपेक्षित हैं। वर्ष 2018-19 में केंद्र सरकार का इस मद में सालाना बजट 50 करोड़ था, जिसे 2019-20 में घटा कर 40 करोड़ कर दिया गया। दिनों-दिन बढ़ रही भौतिक लिप्सा और उससे उपजे तनावों व भागमभाग की जिंदगी के चलते भारत में मानसिक रोगियों की संख्या पश्चिमी देशों से भी ऊपर जा रही है। विशेष रूप से महानगरों में ऐसे रोग कुछ अधिक ही गहराई से पैठ कर चुके हैं। बात-बात पर बिगड़ना और फिर जल्द से लाल-पीला हो जाना ऐसे रोगियों की आदत बन जाती है। काम से जी चुराना, बहस करना और खुद को सच्चा साबित करना इनके प्रारंभिक लक्षण हैं। भय की कल्पनाएं इन लोगों को इतना जकड़ लेती हैं कि उनका व्यवहार बदल जाता है। जल्द ही दिमाग प्रभावित होता है और पनप उठते हैं मानसिक रोग।
जहां एक ओर मर्ज बढ़ता जा रहा है, वहीं हमारे देश के मानसिक रोग अस्पताल सौ साल पुराने पागलखाने के रूप में ही जाने जाते हैं। ये इमारतें मानसिक रोगियों की यंत्रणाओं, उनके प्रति समाज के उपेक्षित रवैये और सरकारी उदासीनता की गवाह हैं। तभी 2017 में 10,246 और 2018 में 10,134 मानसिक रोगियों ने आत्महत्या कर ली थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानता रहा है कि देश भर के पागलखानों की हालत बदतर है। इसे सुधारने के लिए कुछ साल पहले बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ और चेतना विज्ञान संस्थान (निमहान्स) में एक परियोजना शुरू की गई थी। पर उसके किसी सकारात्मक परिणाम की जानकारी नहीं है। यह भी संसाधनों का रोना रोते हुए फाइलों में ठंडी हो गई।
हमारे देश में केवल 43 सरकारी मानसिक रोग अस्पताल हैं। इनमें से मनोवैज्ञानिक इलाज की व्यवस्था तीन जगह ही है। इन अस्पतालों में 21,000 बिस्तर हैं जो जरूरत से बहुत कम है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम की एक रिपोर्ट में भी इस बात का प्रमाण है कि ऐसे रोगियों की बड़ी संख्या इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ है। सरकारी अस्पतालों के नारकीय माहौल में जाना उनकी मजबूरी होता है। आज भी अधिकांश मानसिक रोगी बगैर इलाज के अमानवीय हालात में जीने को मजबूर हैं। इन तमाम पहलुओं को समझते हुए हमें इस बारे में निर्णय लेना होगा।
देश-समाज में मानसिक रोग, रोगियों और उनके इलाज को लेकर व्यापक भ्रांतियां हैं, जिन्हें समङो बिना इस समस्या को समाप्त नहीं किया जा सकता
Heavy lightning is effect of climate change
- धरती
के बढ़ते तापमान का कुप्रभाव है आकाशीय बिजली का गिरना
पंकज चतुर्वेदी
इसकी
शुरुआत बादलों के एक तूफ़ान के रूप में एकत्र होने से होती है । इस तरह बढ़ते तूफान
के केंद्र में,
बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े और बहुत ठंडी पानी की बूंदें आपस
में टकराते हैं और इनके बीच विपरीत ध्रुवों के विद्युत कणों का प्रवाह होता है ।
वैसे तो धन
और ऋण एक-दूसरे को चुम्बक की तरह अपनी ओर आकर्षित करते हैं, किंतु
वायु के एक अच्छा संवाहक न होने के कारण विद्युत आवेश में बाधाएँ आती हैं। अतः
बादल की ऋणावेशित निचली सतह को छूने का प्रयास करती धनावेशित तरंगे भूमि पर गिर
जाती हैं। चुनी धरती विद्युत की सुचालक है। यह बादलों की बीच की परत की तुलना में
अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से चार्ज होती है। तभी इस तरह पैदा हुई बिजली का अनुमानित 20-25 प्रतिशत
प्रवाह धरती की ओर हो जाता है। भारत में
हर साल कोई दो हज़ार लोग इस तरह बिजली गिरने से मारे जाते हैं, मवेशी और मकान आदि
का भी नुक्सान होता है
जिस
तरह दिनांक 25 जून को बिहार और उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में बिजली गिरी और कोई
सवा सौ लोग मारे गये , यह एक असामान्य घटना है . जहाँ अमेरिका में हर साल बिजली
गिरने से तीस, ब्रिटेन में औसतन तीन लोगों की मृत्यु होती है , भारत में यह आंकडा
बहुत अधिक है- औसतन दो हज़ार . इसका मूल कारण है कि हमारे यहाँ आकाशीय बिजली के
पूर्वानुमान और चेतावनी देने की व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई है . आंकड़े गवाह हैं
कि हमारे यहाँ बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में बिजली गिरने की
घटनाएँ ज्यादा होती हैं , सैंड रहे बिजली के शिकार आमतौर पर दिन में ही होते हैं ,
यदि तेज बरसात हो रही हो और बजली कडक रही हो तो ऐसे में पानी भरे खेत के बीच में,
किसी पेड़ के नीचे , पहाड़ी स्थान पर जाने से बचना चाहिए . मोबाईल का इस्तेमाल भी
खतरनाक होता है . पहले लोग अपनी इमारतों में ऊपर एक त्रिशूल जैसी आकृति लगाते थे-
जिसे तड़ित-चालक कहा जाता था , उससे बिजली गिरने से काफी बचत होती थी , असल में उस
त्रिशूल आकृति से एक धातु का मोटा तार या पट्टी जोड़ी जाती थी और उसे जमीन में गहरे
गाडा जाता था ताकि आकाशीय बिजली उसके माध्यम से नीचे उतर जाए और इमारत को नुक्सान
न हो .
यह
समझना होगा कि इस तरह बहुत बड़े इलाके में एक साथ घातक बिजली गिरने का के पीछे का
असल कारण धरती का लगातार बदल रहा तापमान है . यह बात सभी के सामने है कि आषाढ़ में
पहले कभी बहुत भारी बरसात नहीं होती थी लेकिन अब ऐसा होने लगा है, बहुत थोड़े से
समय में अचानक भारी बारिश हो जाना और फिर सावन-भादों सूखा जाना- यही जलवायु
परिवर्तन की त्रासदी है और इसी के मूल में
बेरहम बिजली गिरने के कारक भी हैं । जैसे-जैसे जलवायु बदल रही है, बिजली
गिरने की घटनाएँ ज्यादा हो रही हैं ।
एक
बात और बिजली गिरना जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम तो है लेकिन अधिक बिजली गिरने
से जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को भी गति मिलती है । सनद रहे बजली गिरने के
दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और यह एक घातक ग्रीनहाउस गैस है।हालांकि
अभी दुनिया में बिजली गिरने और उसके जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव के शोध बहुत सीमित
हुए हैं लेकिन कई महत्वपूर्ण शोध इस बात को स्थापित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन
ने बजली गिरने के खतरे को बढ़ाया है इस दिशा में और गहराई से कम करने के लिए ग्लोबल क्लाइमेट
ऑब्जर्विंग सिस्टम (GCOS) - के
वैज्ञानिकों ने विश्व मौसम विज्ञान संगठन
(WMO)
के साथ मिल कर एक
विशेष शोध दल (टीटीएलओसीए) का गठन किया है ।
धरती
के प्रतिदिन बदलते तापमान का सीधा असर वायुमंडल पर होता है और इसी से भयंकर तूफ़ान
भी बनते हैं । बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध धरती के तापमान से है जाहिर है कि
जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है , बिजली की लपक उस और ज्यादा हो रही है । यह भी जान
लें कि बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध बादलों के उपरी ट्रोपोस्फेरिक या क्षोभ-मंडल जल
वाष्प,
और ट्रोपोस्फेरिक ओजोन परतों से हैं और दोनों ही खतरनाक
ग्रीनहाउस गैस हैं। जलवायु परिवर्तन के अध्ययन से पता चलता है कि भविष्य में यदि जलवायु
में अधिक गर्माहट हुई तो गरजदार तूफ़ान कम लेकिन तेज आंधियां ज्यादा आएँगी और हर एक
डिग्री ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती तक बिजली की मार की मात्रा 10% तक बढ़ सकती है।
कैलिफोर्निया
विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों
ने वायुमंडल को प्रभावित करने वाले अवयव और बिजली गिरने के बीच सम्बन्ध पर एक शोध
मई २०१८ में प्रारंभ किया था । उनका आकलन था कि आकाशीय बिजली के लिए दो प्रमुख
अवयवों की आवश्यकता होती है: तीनो अवस्था (तरल, ठोस और गैस) में पानी और बर्फ बनाने से रोकने वाले घने बादल । वैज्ञानिकों
ने 11 अलग-अलग जलवायु मॉडल पर प्रयोग किये और पाया कि भविष्य में
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट आने से रही और इसका सीध अपरिणाम होगा कि आकाशीय
बिजली गिरने की घटनाएँ बढेंगी ।
एक
बात गौर करने की है कि हाल ही में जिन इलाकों में बिजली गिरी उमे से बड़ा हिस्सा धन
की खेती का है और जहां धान के लिए पानी को एकत्र किया जता है, वहां से ग्रीन हॉउस
गैस जैस मीथेन का उत्सर्जन अधक होता है । जितना मौसम अधिक गर्म होगा, जितनी ग्रीन
हॉउस गैस उत्सर्जित होंगी, उतनी ही अधिक बिजली, अधिक ताकत से धरती पर गिरेगी । उनके
निष्कर्ष समझ में आते हैं क्योंकि भारी वर्षा और तूफान ऊर्जा वायुमंडल में जल
वाष्प की उपलब्धता से संबंधित हैं, और गर्म वातावरण अधिक नमी धारण कर सकते हैं। हालांकि, यह काम भविष्यवाणी नहीं कर सकता है, जब या जहां बिजली के हमले हो सकते हैं।
"यह उन क्षेत्रों में हो सकता है जो आज बहुत अधिक बिजली की
हड़ताल प्राप्त करते हैं, भविष्य में
और भी अधिक हो जाएंगे, या यह हो
सकता है कि देश के कुछ हिस्सों को भविष्य में बहुत कम बिजली मिल सकती है," रोम्स ने कहा। "हम इस बिंदु पर नहीं जानते हैं।"
“जियोफिजिकल
रिसर्च लेटर्स” नामक ऑनलाइन जर्नल के मई अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में अल
नीनो-ला नीना, हिंद महासागर डाय और दक्षिणी एन्यूलर मोड के जलवायु परिवर्तन पर
प्रभाव और उससे दक्षिणी गोलार्ध में बढ़ते तापमान के कुप्रभाव सवरूप अधिक आकाशीय
विद्धुत-पात की संभावना पर प्रकाश डाला गया है । एल नीनो-ला नीना, विषुवतीय पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में गर्म और ठन्डे
काल हैं और यह समूची दुनिया की जलवायु को सबसे अधिक प्रभावित करते है।
विदित हो मानसून में बिजली चमकना बहुत सामान्य बात है। बिजली तीन तरह की होती है- बादल के भीतर कड़कने वाली, बादल से बादल में कड़कने वाली और तीसरी बादल से
जमीन पर गिरने वाली। यही सबसे ज्यादा नुकसान करती है। बिजली
उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते
हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री
सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है। स्पष्ट है कि
जितना तापमान बढेगा , बिजली भी उतनी ही बनेगी व् गिरेगी ।
यह
सारी दुनिया की चुनोती है कि कैसे ग्रीन हॉउस गैसों पर नियंत्रण हो और जलवायु में
अनियंत्रित परिवर्तन पर काबू किया जा सके , वरना, समुद्री तूफ़ान, बिजली गिरना,
बादल फटना जैसी भयावह त्रासदियाँ हर साल बढेंगी ।
why not fair inquiry of inquiry of Delhi riots
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